छोटी-छोटी बालिकाओं में भी रहा उत्साह, लोक गीत गाते हुए अमावस्या पर किया विसर्जन
बेहरी (हीरालाल गोस्वामी)। मालवा-निमाड़ में श्राद्ध पक्ष में प्रचलित लोक देवी संजा माता की पूजा-अर्चना की गई। दीवार पर गोबर से अलग-अलग आकृति बनाकर संजा पर्व मनाया गया। संजा माता के उद्यापन के लिए अपने ससुराल से कई बेटियां पीहर आई। विसर्जन के दौरान छोटी-छोटी बालिकाआें में भी उत्साह देखा गया।
जिन बेटियों की इस वर्ष शादी हो चुकी है, उन्होंने ससुराल से पीहर आकर संजा माता का उद्यापन पूर्ण किया। 16 सहेलियों को श्रृंगार की सामग्री वितरित करते हुए संजा माता की पूजा की। संजा माता की विदाई के गीत गाते हुए अमावस्या पर्व पर पवित्र नदी में संजा माता की आकृति से निकलने वाली अवशेष को विसर्जित किया।
कात्यानी मंदिर के पुजारी राजेंद्र उपाध्याय ने बताया कि यह पर्व आदिकाल से मनाया जा रहा है। माता पार्वती ने शिवजी को वर के रूप में पाने के लिए खेल-खेल में 16 दिन तक संजा माता की आराधना की थी, तब से ही यह परंपरा चली आ रही है। पूरे पर्व में शादी समारोह का उत्साह रहता है। मान्यता है, कि जो कुंवारी कन्याएं संजा माता का पूजन करती हैं, उन्हें योग्य वर मिलता है।
पुजारी उपाध्याय ने बताया, कि यह एक प्रकार से शिव-पार्वती के विवाह की रस्म रहती है। आखिरी दिन कला कोर्ट में बारातियों में शिव के सभी गण दर्शाए जाते हैं, जिसमें चांद, सूरज, हाथी, घोड़ा, पालकी, शहनाई वादक और अन्य लोग। साथ में संजा माता का पूरा श्रृंगार और डोली बनाई जाती है। अन्य मान्यता के अनुसार ब्रज प्रदेश में राधा-कृष्ण प्रसंग में राधा ने सबसे पहले फूलों से सांझी बनाई थी। अलग-अलग मान्यताओं के चलते यह पर्व मनाया गया।
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