बेहरी (हीरालाल गोस्वामी)। डोल ग्यारस पर सभी मंदिरों में विशेष पूजन हुआ। राधाकृष्ण मंदिर, मां कात्यायनी मंदिर, लक्ष्मीनारायण मंदिर, नृसिंह मंदिर, राम मंदिर, लक्ष्मी नारायण मंदिर में आकर्षक साज-सज्जा की गई।
पुजारी जगदीशदास बैरागी ने बताया कि भाद्रपद में शुक्ल पक्ष की एकादशी को परिवर्तनी एकादशी कहते हैं। इसे डोल ग्यारस के नाम से जाना जाता है। डोल ग्यारस एवं परिवर्तनी एकादशी को जलझूलनी ग्यारस भी कहा जाता है। इस दिन भगवान विष्णु ने करवट बदली थी, इसलिए इसे परिवर्तनी एकादशी कहते हैं। इस दिन व्रत रखने से सभी दुख दूर होकर मुक्ति मिलती है। डोल ग्यारस पर भगवान कृष्ण के बाल रूप का जलवा पूजन किया गया। भगवान कृष्ण के बाल रूप बालमुकुंद को एक डोल में विराजमान कर शोभायात्रा निकाली गई।
डोल ग्यारस पर सभी मंदिरों में पूजा की गई। भगवान कृष्ण की मूर्ति को एक डोल में विराजमान कर नगर का भ्रमण कराया गया। इस अवसर पर चल समारोह में अखाड़ों का प्रदर्शन भी किया। डोल ग्यारस पर भगवान राधाकृष्ण की नयनाभिराम विद्युत सज्जित झांकी निकाली गई। श्रीकृष्ण के जन्म के 16 दिन में माता यशोदा ने उनका जलवा पूजन किया था, तब से इस दिन को डोल ग्यारस के रूप में मनाया जाता है। पंडित अंतिम उपाध्याय, राजेश बैरागी, संजय बैरागी, अशोक उपाध्याय, गोवर्धन उपाध्याय ने आरती की। आरती के बाद प्रसाद वितरण किया गया।
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