देवास। गम समान भोजन नहीं, जो करी जाने कोई। गम यानी समझ। जो कोई मानव गम पर आ गया, समझ पर आ गया वह जीवन-मरण से रहित हो जाता है। गम के समान कोई भोजन नहीं है। दुख के समान कोई भोजन नहीं है। जिसने गम को हजम कर लिया, दुख को हजम कर लिया। जिसने नींद को हजम कर लिया। वह जागना सीख गया, क्योंकि वह दुख, गम और नींद को समझ गया इसलिए वह दुख छोटा पड़ गया।
यह विचार सद्गुरु मंगलनाम साहेब ने सदगुरु कबीर प्रकट उत्सव समिति द्वारा आयोजित कबीर महाकुंभ में चौका विधान, सर्वोदय विधान के दौरान व्यक्त किए। उन्होंने कहा, कि थाह क्या चीज है। जैसे एक गांव इतना लंबा है, समुद्र इतना लंबा-चौड़ा है। देश इतना बड़ा है। यह सब सांसारिक चीजे हैं। सांसारिक चीजों को जो समझ रहे हो उनकी सीमाएं हैं। जैसे धरती से आसमान की लंबाई 98 करोड़ योजन, 49 करोड़ योजन निरंजन साहब का शरीर है जो पानी से पैदा होने वाला है। गम जो संसार की सीमाओं को पार कर गया। जिसने व्यापक भोजन कर लिया। जिसने श्वास का भोजन प्राप्त कर लिया हो, जिसने प्रकाश का भोजन प्राप्त कर लिया हो। उनकी कोई सीमा नहीं है। वह व्यापक, अनंत और असीम वस्तु है। संसार की सीमाएं बनी हुई है, लेकिन श्वास की सीमाएं नहीं है। श्वास व्यापक है असीम और अनंत है जो सब जीव चराचर में श्वास रूप में निरन्तर बह रहा है। हम सब श्वास रूपी खंभे से जुड़े हुए हैं। जिस दिन यह श्वास रूपी खंभा उखड़ जाता है, उस दिन हमारा शरीर मुर्दा हो जाता है।
कार्यक्रम पश्चात महाप्रसाद का वितरण किया गया। सैकड़ों साध संगत ने प्रसाद ग्रहण कर धर्म लाभ लिया। यह जानकारी सेवक राजेंद्र चौहान ने दी।
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