देवास। परमात्मा को समझना-बुझना किसी के बस की बात नहीं। साहब ने किसी आदमी को नहीं बदला। उनकी भावनाओं को नहीं बदला। उनके व्यवहारों को, उनके विचारों को बदला। उन्होंने कहा हम तो बदल ही नहीं सकते अपने आप को। साहब ने कहा तुम मत बदलो, लेकिन तुम्हारी जरूरत है वह पूरी करो। परमात्मा ने कहा तुम मत बदलो मैं झुक जाता हूं। क्योंकि मुझे दया और प्रेम चाहिए।
यह विचार सद्गुरु मंगलनाम साहेब ने उज्जैन में आयोजित कबीर प्रकटोत्सव महाकुंभ में शामिल होने के लिए रवाना होने से पूर्व व्यक्त किए। उन्होंने आगे कहा, कि एक बार एक कसाई ने कहा मैं तो अपने आप को बदल ही नहीं सकता। मैं तो कसाई हूं, कसाई ही रहूंगा। तब कबीर साहब ने कहा तू दुख, दर्द को हटा दे, बीमारी हटा दे, तुझे जलाने के बाद भी आशीर्वाद मिलेगा। तुझे कोई सजा नहीं देगा। तेरे व्यवहार को मत बदल, लेकिन इसको तो बदल, भावनाओं को बदल, छुरी हाथ में है तो इससे बीमारी को खत्म कर लोगों को सुखी कर। तेरी छुरी मत बदल, लेकिन तेरी भावनाओं को बदल दे तू लोगों के दुख दर्द को खत्म कर दे। गले की गठन को खत्म कर दे। पैरों की बीमारी आई है उसको खत्म कर दे। केवल नाम लेने मात्र से ही संसार में सुख और सारी व्यवस्था मंगलमय हो जाती है। जीवन की सारी यात्राएं मंगलमय हो जाती है, जबकि उपलब्धियां जैसे कि आपका मंगल परिणय हो। मतलब आनंदमय हो गए। जैसे गो धूलि का कोई समय नहीं होता। लेकिन शाम को जब लौट कर गौ माता आती है तो वह बेला मंगलमय हो जाती है।
सद्गुरु मंगल नाम साहेब का साध संगत ने पुष्पमालाओं से स्वागत किया। लगभग 25 साध संगत उज्जैन कार्यक्रम के लिए रवाना हुए। यह जानकारी सेवक राजेंद्र चौहान ने दी।
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