देवास। श्री राधा गोविंद धाम गणेश मंदिर, राजाराम नगर में दिव्य आध्यात्मिक प्रवचन श्रृंखला के अंतिम दिवस धामेश्वरी देवी ने भगवद् प्राप्ति के कर्म मार्ग, ज्ञान मार्ग और भक्ति मार्ग का संक्षेप में वर्णन किया।
प्रथम दो मार्गों का वर्णन करते हुए कहा कि कर्मकांड की घोर निंदा भी की गई है। ज्ञान मार्ग पर चलना भी कलयुग में बहुत मुश्किल है, क्योंकि उसमें अधिकारी होना चाहिए। संसार से पूर्ण विरक्त व्यक्ति ही ज्ञान मार्ग में अधिकारी बनेगा और दूसरी बात ज्ञानी भगवान की शरण में नहीं जाता है। नियम ये है, कि सगुण साकार भगवान के शरणागत होने पर ही मायानिवृत्ति हो सकती है।
उन्होंने कहा ज्ञानी का ज्ञान मार्ग में बार-बार पतन होता है, जिसकी रक्षा करने वाला न भगवान होता है न गुरु ही होता है। भगवद्प्राप्ति के तीनों मार्गों में केवल भक्ति मार्ग ही सर्व सुगम, सर्व साध्य एवं सर्वश्रेष्ठ मार्ग है। हमारे वेदों में भक्ति से युक्त कर्म धर्म की प्रशंसा की गई है और भक्ति से रहित कर्म धर्म निंदनीय है।
उन्होंने कहा भक्ति मार्ग बड़ा सरल है, क्योंकि इसमें सभी अधिकारी है और भक्ति में कोई नियम नहीं है कि कैसे भक्ति करों। कर्म आदि में तो नियम है, विधि विधान होना अनिवार्य है। भक्ति मार्ग में बस इतना ही नियम है कि कामना शून्य भक्ति होना चाहिए, यानी निष्काम और अनन्य हो। राधा कृष्ण की भक्ति निष्काम होकर करनी होगी।
उन्होंने कहा महापुरुषों के द्वारा तत्वज्ञान प्राप्त कर उनके अनुगत होकर भक्ति करना ही भक्ति की विशेषता है। भक्ति सर्वश्रेष्ठ है, क्योंकि भक्ति करने से अंतःकरण शुद्ध होता है। अंतःकरण शुद्धि पर दिव्य इंद्रिय मन, बुद्धि प्राप्त होते हैं तभी भगवान का दर्शन, उनका प्रेम, उनकी सेवा मिलती है। भगवद्प्राप्ति के बाद भी भक्ति बनी रहती है और यह भक्ति उत्तरोत्तर बढ़ती जाती है। इस प्रकार भक्ति अजर-अमर है।
प्रवचन का समापन श्री राधा कृष्ण भगवान एवं जगद्गुरु कृपालु महाराज की आरती के साथ हुआ।
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