देवास। तुलसी को प्रतिदिन जल चढ़ाने वाला जीव कभी यमलोक में नहीं जाता। शिव महापुराण सहित अन्य ग्रंथों में तुलसी की महिमा का अद्भुत वर्णन किया गया है। जलंधर की पत्नी वृंदा ही तुलसी बनके संसार में प्रकट हुई। जिनके शील को देवताओं के हित के लिए भगवान नारायण द्वारा भंग किया गया। जब उस पतिव्रता नारी वृंदा को यह पता चला कि मेरा शील भंग भगवान नारायण के द्वारा किया गया है तो उसने भगवान नारायण को श्राप दिया, जिससे शालिग्राम शीला का निर्माण हुआ। भगवान नारायण वृंदा के श्राप से दुखी ना होकर प्रसन्न हुए। कहा, कि जिस नारी में अपने पति के प्रति समर्पण होता है, मैं उस नारी के साथ में स्थान प्राप्त करूंगा। तब से संसार में तुलसी की महिमा व्याप्त हुई।
यह विचार गंगापार्क कॉलोनी के पास मोहरी कुआं तोड़ी पर चल रही सात दिवसीय शिव महापुराण कथा के छठवें दिन व्यासपीठ से पुष्पानंदन महाराज कांटाफोड़ वाले ने व्यक्त किए। उन्होंने आगे कहा, कि भगवान भी तुलसी के बिना सेवा स्वीकार नहीं करते। तुलसी जिस घर में होती है व प्रतिदिन जहां उसकी पूजा होती है। वहा तंत्र-मंत्र की क्रियाओं का भी असर नहीं होता। जिस घर में तुलसी की सूखी लकड़ी से चंदन की तरह घिसकर भगवान नारायण या महादेव को अर्पण किया जाए उस घर में सुख शांति व समृद्धि विद्यमान रहती हैं। किसी मृत व्यक्ति की चिता पर अंतिम संस्कार के समय यदि सूखी तुलसी मुख और हृदय पर डाल दी जाए। तो वह भगवान के धाम का अधिकारी बन जाता है। भगवान शिव के दरबार में या आंगन में कोई तुलसी का वृक्ष लगाता है। उस तुलसी में आने वाली जो मंझेरिया हैं, उन मंझेरियों में जितने फूल होते हैं उतने युगों तक मरने के बाद जीव शिव के धाम में वास करता है। सभी को भगवान शिव के प्रतीक स्वरूप रुद्राक्ष व नारायण के प्रतीक स्वरूप कंठी को गले में धारण करना चाहिए।
कथा के छठवें दिन तुलसी की महिमा पर विस्तारपूर्ण प्रकाश डाला गया। तुलसी-शालिगराम विवाह का भावपूर्ण प्रस्तुतिकरण किया गया। कांकरवाल परिवार व धर्मप्रेमियों ने व्यासपीठ की पूजा-अर्चना कर महाआरती की। सैकड़ों धर्मप्रेमियों ने कथा श्रवण कर धर्म लाभ लिया।
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