– ऐसी रंगों हो गुरुदेव, चुनर म्हारी ऐसी रंगों हो गुरुदेव की प्रस्तुति पर श्रद्धालु झूम उठे
देवास। दुष्टों का संहार करने के लिए संसार में भगवान का अवतार हुआ। भगवान के जो नेत्र हैं, वह सूर्य और चंद्रमा हैं। भगवान की कृपादृष्टि का पात्र वही मानव होता है, जो निष्कपट हो। दृष्टि में कृपा होती है, करुणा होती है, इसलिए करुणामय भगवान की दृष्टि हर किसी पर नहीं पड़ती। भगवान के नेत्रों में करुणा है। जब पूतना भगवान श्रीकृष्ण के जन्म अवसर पर आई तो भगवान ने दृष्टि बंद कर ली, कि कहीं यह पूतना दृष्टि की पात्र न बन जाए। वह छल-कपट से भरी हुई थी।
यह विचार महिला मंडल द्वारा 22 मार्च तक मेंढकीचक तालाब के पास स्थित शिव मंदिर परिसर में आयोजित की जा रही श्रीमद् भागवत कथा के दौरान गुरुवार को व्यासपीठ से भागवताचार्य कृष्णदास महाराज वृंदावन धाम वाले ने व्यक्त किए। आचार्यश्री ने कहा, कि संतों का आशीर्वाद तब मिलता है जब हम हर तरह से सहज हो जाए। गुरु बनाने के बाद भी अगर हमारे मन का भाव नहीं बदले तो फिर दशा खराब हो जाती है। हनुमानजी महाराज ने जब रामजी की मित्रता सुग्रीव से करवाई तो रामजी अपने दुखों को भूल गए। भले ही उनकी पत्नी सीताजी का हरण हो गया था। श्रीराम ने सुग्रीव से कहा चिंता मत करो आपके साथ जिसने विद्रोह किया है, उस बाली का मैं एक ही बाण में विध्वंस कर दूंगा। प्रभु श्रीराम ने मित्रतावश सारे दुःखों को छोड़ दिया। सुग्रीव के साथ हनुमानजी थे इसलिए सुग्रीव का कल्याण हो गया। हमारे पास भी ऐसा कोई संत-गुरु हो जो हमारा हाथ भगवान के हाथ में थमा दें। आचार्यश्री ने कहा, कि गुरु बहुत ही सोच-समझकर बनाना चाहिए। ऐसा गुरु हो जो आज नहीं तो कल परमात्मा से मिलवा दे।
परमात्मा से स्मरण करिएं, कि मुझे कोई ऐसा गुरु मिले जो मेरी चुनरी को रंग दे और रंग कर मुझे तेरे लायक बना दें। इस दौरान ऐसी रंगों हो गुरुदेव, चुनर म्हारी ऐसी रंगों हो गुरुदेव… जैसे भजनों की प्रस्तुति से श्रद्धालु झूम उठे। महिला मंडल की रेणुका सोलंकी, सौरमबाई मालवीय, भारती राठौर, जानीबाई सोलंकी, भूरीबाई कुमावत, सक्कूबाई सिन्नम, राजूबाई सूर्यवंशी, राजेश सिन्नम ने व्यासपीठ की पूजा-अर्चना व महाआरती कर भागवताचार्य कृष्णदास महाराज का शाल-श्रीफल व पुष्पमाला से अभिनंदन किया। सैकड़ों धर्मप्रेमियों ने कथा श्रवण कर धर्म लाभ लिया।
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