नरवाई जलाने से भूमि में उपलब्ध जैव विविधता होती है नष्‍ट

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– नरवाई जलाने पर 15 हजार रुपए तक पर्यावरण क्षतिपूर्ति राशि वसूली जाएगी

देवास। उप संचालक कृषि ने देवास जिले के किसानों से आग्रह किया है, कि खेतों में फसल अवषेश (नरवाई) ना जलाएं। फसल कटाई के बाद बचे फसल अवशेषों में आग लगाने से पर्यावरण गंभीर रूप से प्रभावित होता है। भूमि में उपलब्ध जैव विविधता समाप्त हो जाती है। भूमि में उपस्थित सूक्ष्म जीव एवं केचुआं सहित पशु-पक्षी आदि विभिन्न जीव जलकर नष्ट हो जाते हैं। इनके नष्ट होने से खेत की उर्वरकता पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। फसल अवशेषों को खेत में ही मिट्टी पलटने वाले हल से या रोटावेटर से मिलाएं, जिससे खेत की उपजाऊ क्षमता में वृद्धि होगी।

गेहूं की फसल काटने के पश्चात जो तने की अवशेष अर्थात नरवाई होती है, उसमें लगभग नत्रजन 0.50 प्रतिशत, स्फूर 0.6 और पोटाश 0.8 प्रतिशत पाया जाता है, जो नरवाई में जलकर नष्ट हो जाता है।

भूमि की ऊपरी पर्त में उपलब्ध आवश्यक पोषक तत्व आग लगने के कारण जलकर नष्ट हो जाते हैं। भूमि की भौतिक दशा खराब हो जाती है, भूमि कठोर हो जाती है, जिसके कारण भूमि की जलधारण क्षमता कम हो जाती है। इसके फलस्वरूप फसलें जल्दी सूखती है। भूमि में होने वाली रासायनिक क्रियाएं भी प्रभावित होती है, जैसे कार्बन व नाइट्रोजन एवं कार्बन और फास्फोरस का अनुपात बिगड़ जाता है, जिससे पौधों को पोषक तत्व ग्रहण करने में कठिनाई होती है। नरवाई की आग फैलने से जन-धन की हानि होती है एवं पेड़ पौधे जलकर नष्ट हो जाते हैं।

गेहूं फसल के दाने से डेढ़ गुना भूसा होता है। अर्थात एक हेक्टर में 40 क्विंटल गेहूं का उत्पादन होगा तो भूसे की मात्रा 60 क्विंटल होगी और इस भूसे से 30 किलो नत्रजन, 36 किलो स्फूर, 90 किलो पोटाश प्रति हेक्टर प्राप्त होता है।

जिले में नरवाई जलाने पर पर्यावरण क्षतिपूर्ति राशि देय होगी। जो दो एकड़ से कम पर 2 हजार 500, दो एकड़ से अधिक व 5 एकड़ से कम पर 5 हजार रुपए और 5 एकड़ से अधिक पर 15 हजार रुपए अर्थदंड वसूला जाएगा।

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