देवास। शिवरात्रि अथवा परमात्मा का दिव्य जन्म। शिव अर्थात कल्याणकारी नाम परमात्मा का इसलिए है, क्योंकि वह धर्मग्लानि के समय जब मनुष्य आत्माएं माया (पांच विकारों) के कारण दुखी, अशांत ,पतित एवं भ्रष्टाचारी बन जाती है, तो उनको पुनः पावन अथवा एक रस बनाने का कल्याणकारी कर्तव्य करते हैं। परमात्मा शिव के इस धरा पर अवतरित हुए 88 वर्ष हो चुके हैं। परमात्मा शिव के इस दिव्य एवं अलौकिक जन्म की पुनीत स्मृति में ही शिवरात्रि का त्योहार मनाया जाता है। शिवरात्रि का त्योहार भारत में ही मनाया जाता है, क्योंकि भारत भूमि ही परमात्मा के जन्म तथा कर्म की पावन भूमि है। परमात्मा शिव अवतरित होकर अपने ज्ञान, योग तथा पवित्रता द्वारा आत्माओं में आध्यात्मिक जागृति उत्पन्न करते हैं।
यह विचार प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय की जिला संचालिका ब्रह्माकुमारी प्रेमलता दीदी ने कालानी बाग सेंटर पर महाशिवरात्रि पर्व पर परमात्मा शिव के ध्वजारोहण एवं पूजा-अर्चना अवसर पर व्यक्त किए। दीदी ने आगे कहा, कि किसी वस्तु का रूप स्थूल आंखों से दिखाई ना देता हो यह तो हो सकता है, परंतु किसी का अस्तित्व हो और रूप उसका हो ही नहीं। यह बात असंभव है। इसी प्रकार परमात्मा भी अरूप नहीं है। उस दिव्य एवं अव्यक्त सत्ता का रूप अवश्य है। परंतु वह भी दिव्य एवं अव्यक्त होने के कारण दिव्य चक्षु से ही देखा जा सकता है। परमात्मा को निराकार कहने का अर्थ यह नहीं है कि उसका कोई रूप ही नहीं है। वास्तव में निराकार शब्द सापेक्ष है, अर्थात अन्य आत्माओं के दैहिक रूप की तुलना में उसका प्रयोग किया जाता है। अन्य आत्माएं तो स्थूल अथवा सूक्ष्म शरीर धारण करती है, परंतु परमात्मा जन्म मरण से न्यारा है, परमात्मा का अपना ना कोई साकारी शरीर है और ना ही कोई सूक्ष्म अथवा आकारी शरीर है। इसलिए उसको निराकार कहा जाता है।
अतः निराकार का अर्थ है, अकाय, अव्यक्त, अशरीरी। परमात्मा रूप से न्यारे नहीं उनका रूप न्यारा है। परमात्मा का दिव्य रूप ज्योति बिंदु अर्थात ज्योति के आकार जैसा रूप है। प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय संस्था से जुड़े भाई-बहनों ने ब्रह्माकुमारी प्रेमलता दीदी के सानिध्य में परमात्मा शिव की पूजा-अर्चना कर मन में व्याप्त विकारों को दूर कर सद्भावना का संकल्प लिया।
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