- मिडिल स्कूल में पढ़ने के लिए पगडंडीनुमा रास्ते से गुजरना पड़ता है-
- गोपालपुर व टिमरानिया मोहल्ला मजरा टोले में नहीं है स्कूल, जाना पड़ता है चैनपुरा
बेहरी। यूं तो सरकार शिक्षा के लिए करोड़ों रुपए खर्च कर रही है। दूर-दराज के गांवों में शिक्षा के प्रचार-प्रसार के लिए स्कूल खोले जा रहे हैं। विद्यार्थियों को पुस्तकें, यूनिफार्म सहित अन्य सुविधाएं मुहैया कराई जा रही है। इधर बेहरी के समीप गोपालपुर एवं टिमरानिया मोहल्ला मजरा टोले के नन्हे विद्यार्थियों के लिए शिक्षा की यह राह बेहद कठिन और चुनौतीपूर्ण बनी हुई है। मजरे टोले में मिडिल स्कूल नहीं है। विद्यार्थियों को पढ़ने के लिए चैनपुरा जाना पड़ता है और यही से उनकी परीक्षा शुरू हो जाती है।
गोपालपुर व टिमरानिया से चैनपुरा तक पहुंचने के लिए पगडंडीनुमा रास्ता है। इस रास्ते का कुछ हिस्सा जंगल में शामिल है। बारिश में लगभग तीन किमी के रास्ते पर कीचड़ फैल रहा है। कीचड़ इस कदर फैल रहा है, कि पैदल चलना भी कठिन हो गया है। शासन की ओर से बच्चों को साइकिल जरूर मिली है, लेकिन ऐसे रास्ते पर उन्हें पैदल चलने में भी कठिनाई हो रही है। बच्चे कीचड़भरी राह से गुजरकर स्कूल पहुंचते हैं। स्कूल पहुंचते-पहुंचते उनकी यूनिफार्म भी गंदी हो जाती है। मजरे टोले से 31 बच्चे पढ़ने के लिए चैनपुरा जाते हैं। बच्चे पढ़-लिखकर उच्च पद हासिल करना चाहते हैं, लेकिन अभी तो उनकी यह कठिन राह परीक्षा ले रही है। स्थानीय लोगों का कहना है, कि यह परेशानी अभी की नहीं, बल्कि वर्षों से हम इसी प्रकार की परेशानी उठा रहे हैं। कई बार जनप्रतिनिधियों को भी अवगत कराया, लेकिन किसी ने हमारी इस समस्या पर ध्यान नहीं दिया।
धावड़िया आदिवासी ग्राम पंचायत के रूप में संचालित हो रही है। विधानसभा में भी आदिवासी समाज से जनप्रतिनिधि चुनकर जाते हैं। चुनाव के दौरान सड़क बनाने के आश्वासन जरूर मिले, लेकिन सड़क नहीं बनी। महज 3 किलोमीटर की खराब सड़क के चलते बारिश में बच्चे स्कूल तक नहीं पहुंच पाते। छात्रा मुस्कान, जागृति, भूरी, संतोषी, निशा, राजा, आकाश, अजय, रामदेव आदि ने बताया, कि हम चैनपुरा के मिडिल स्कूल में पढ़ने जाते हैं। रास्ते में कीचड़ और पानी भरा होने से बहुत परेशानी होती है। हमारी ड्रेस भी खराब हो जाती है। कीचड़ होने से साइकिल भी नहीं चलती।
समस्या का निराकरण होना चाहिए-
पूर्व सरपंच लालसिंह, प्रेमसिंह, भगवानसिंह, सुखलाल, मोहनसिंह एवं रायमल आदि ने बताया कि इस समस्या का हल हो जाए तो बागली मुख्यालय की दूरी भी कम होगी और ये गांव रोड से जुड़ जाएंगे। दुर्गम पहाड़ी वाला रास्ता होने से जब तक बच्चे स्कूल से घर नहीं आते, तब तक परिवार में चिंता बनी रहती है।
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