संसार से सावधान होने की जरूरत नहीं, स्वयं से सावधान हो जाओ- सद्गुरु मंगल नाम साहेब

Posted by

Share

देवास। तुम से ही तुम सावधान हो जाओ और किसी से सावधान होने की जरूरत नहीं है। तुम्हारी आंखों से तुम अच्छे-बुरे को देखो। तुम्हारे कान तुम्हारे साथ हैं, तुम्हारे हाथ तुम्हारे साथ हैं, तुम्हारी श्वास तुम्हारे साथ है। तुम पूर्ण ब्रह्मा हो, पूर्ण परमात्मा परमेश्वर हो। तुम्हारा स्वर ही संसार की समस्त विधाओं को लेने देने का काम कर रहा है। भूल भुलैया में तुम चमड़े कपड़े में भूले हो। उम्र के घेराव में, रज बिरज की चादर में, पद पदार्थ में भूले हो। सद्गुरु मिले तो भेद बताए।
यह विचार सद्गुरु मंगल नाम साहेब ने सदगुरु कबीर सर्वहारा सेवा समिति प्रार्थना स्थली द्वारा आयोजित चौका आरती के दौरान व्यक्त किए। उन्होंने कहा किसी को मत खोजो, सद्गुरु को खोजो, जो तुम्हें यह देखना सिखा दे। किसी ओर को खोज-खोज कर पागल हो जाओगे। संसार में अरबों-खरबों लोग हैं। तुम किस-किस की ओर उंगली लंबी करोंगे। तुम अपने को खोजो, तुम्हारे अंदर पूरा पिंड ब्रह्मांड समाया है। तुम अपनी ओर लौटो। अपनी ओर लौटने पर संसार के सारे सुख-दुख से पार जाने का रास्ता मिल जाएगा।
उन्होंने कहा सद्गुरु ही तुम्हें आंख में आंख डालकर हाथों में हाथ पकड़कर समझा देगा, कि तुम, तुम ही हो, जिसको तुम खोजते फिर रहे हो। कोई दूसरा नहीं है, सब भ्रम है। सत्य जीव बहुत बड़ा है जिसमें करोड़ों ब्रह्मा और सूरज-चांद समाए हुए हैं। जैसे घास के ऊपर ओस की बूंद सूरज के प्रकाश में दिखाई देती है वैसे ही सब जीवों, सब शरीर में यह जीव दिखाई देता है और आदमी भूला हुआ है कि मैं हूं। तुम कुछ भी नहीं हो निर्णय आने पर सब एक हैं।
उन्होंने कहा जीव जिस शरीर में भरा गया है वह जीव वैसा ही दिखाई देता है जैसे कुत्ता, बिल्ली, सांप बिच्छू आदि 84 लाख योनियों में जीव ही समाया है। इन सारे शरीरों में जीव जब शरीर छोड़ता है तो जीवों में जीव हो जाता है। जैसे पानी में पानी, हवा में हवा हो जाती हैं। प्रकाश में प्रकाश हो जाता है। दिखाई भी नहीं देता है पर उसकी क्रिया कल्पना होती है।


उन्होंने आगे कहा कि जैसे अंधेरे में कोई घटना का परिणाम दिखता है, लेकिन अंधेरे को ढूंढने जाओंगे कि उसकी जड़ कहां है। अंधेरा होता है उसका परिणाम होता है, लेकिन उसकी जड़ दिखाई नहीं देती। उसको ढूंढने से शुद्ध करने पर शुद्ध हो जाता है वह शुद्ध उजाला है। जीव असीम है, व्यापक है परम तत्व को जानने वाला जीव सबको समा लेता है, क्योंकि उसकी सीमाएं नहीं है असीम और व्यापक है। जिसमें करोड़ों चांद सूरज समाए हुए, लेकिन फिर भी वह पिंड टूटता है और जीवों में जीव समा जाता है। शरीर जीव की उछाल है। जीव में से शरीर उछलते हैं और वापस जीव में समा जाते हैं। शब्दों में से शब्द उछलते हैं और वापस शब्द में समा जाते हैं। इसलिए बोलने वाला चेतन में और जो बोल दिया वह जड़ हो जाता है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *