जमीं सबकी अपनी-अपनी आसमां सबका एक है। संसार में किसी भी युग में पृथ्वी के किसी भी हिस्से पर हमेशा से जमीन पर मनुष्य अपना अधिकार साबित करता आया है। इसके लिए मानव इतिहास संघर्ष एवं युद्ध से भरा पड़ा है और भी न जाने क्या-क्या षड्यंत्र रचे गए जमीन पर अपना कब्जा बनाए रखने के लिए। लेकिन प्रारंभ से आज तक आसमां अभी भी सबके लिए एक ही है, उसमें कोई भेदभाव नहीं है। आकाश में वायु और पक्षी अपनी इच्छा से विचरण करते हैं। जब भी मानव को ईश्वर की आराधना करना होता है तो वह आसमान की ओर देखकर अपने हाथ जोड़ लेता है इसीलिए ईश्वर के लिए ऊपर वाला शब्द भी प्रयोग किया जाता है। आसमान हमें यह संकेत देता है कि ईश्वर सबके लिए है और सब उसी के है और ईश्वर किसी के साथ भेदभाव नहीं करता। इसी सार तत्व को ध्यान में रखते हुए हमें अपना जीवन व्यतीत करना चाहिए।
जीवन में अपने कर्तव्य का निर्वहन करते हुए व्यक्ति अनेक प्रकार के कर्म करता है और अपनी इच्छा पूर्ति के लिए वह दूसरों का अहित भी करने से परहेज नहीं करता। लेकिन कर्म का फल उसे भोगना ही पड़ता है। व्यक्ति की संपत्ति और धन के एक या अनेक उत्तराधिकारी हो सकते हैं, लेकिन उसके कर्म का उत्तराधिकारी वह स्वयं होता है यह अटल सत्य है, और इसे हमें हमेशा अपने ध्यान में रखकर ही अपने कर्म करना चाहिए।
लेखक: महेश सोनी, प्रधानाध्यापक शासकीय माध्यमिक विद्यालय, महाकाल कॉलोनी देवास
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