- श्रीराधाकृष्ण मंदिर में नानीबाई का मायरा कथा में अंतिमबाला बैरागी ने दिए प्रेरणादायी उद्बोधन
देवास। भक्त नरसिंह को साक्षात भगवान ने दर्शन दिए, भक्ति हो तो मीरा, कर्मा और प्रहलाद जैसी। हम मन वचन और कर्म से कितने ही जाने-अनजाने में पाप कर बैठते हैं, जब हम कथा में आते हैं तो सभी पाप नष्ट हो जाते हैं। हमारे कण-कण में राम समाए हुए हैं। कलियुग केवल नाम अधारा। जीवन का बेड़ा पार करने के लिए कलियुग में केवल नाम का ही आधार है। कलियुग में हम इतने व्यस्त हो गए हैं, कि हमें समय ही नहीं मिलता है। हम सौभाग्यशाली हैं कि हमें राम नाम लेने का अवसर मिला है।
यह विचार श्रीराधाकृष्ण मंदिर चाणक्यपुरी में नानीबाई के मायरे में दूसरे दिन शनिवार को अंतिम बाला बैरागी ने व्यक्त किए। भक्ति गीत कण-कण में राम समाया है, राम की अद्भुत माया है…की संगीतमय सुमधुर प्रस्तुति ने ऐसा समा बांधा की भक्त झूमने लगे। उन्होंने कहा कि एक बार नारदजी वैकुंठ गए, तब भगवान नारायण का सुंदर रूप देखा। लक्ष्मीजी और नारायण अपने आसन पर विराजमान थे। नारदजी की दृष्टि अचानक एक पुस्तक पर पड़ी जो भगवान नारायण के पास रखी हुई थी। नारदजी ने प्रभु से कहा, कि आपके पास यह कैसी पुस्तक है। भगवान नारायण ने कहा कि अरे! नारद इस पुस्तक में मेरे उन भक्तों का नाम लिखा हुआ है, जो रोज मेरा नाम लेते हैं। जो मेरे परम भक्त होते हैं। नारदजी ने कहा कि मैं यह पुस्तक देख सकता हूं तो भगवान नारायण ने कहा कि देख लो। देखा, कि पहले ही पेज पर नारदजी का नाम लिखा था। यह देख कर नारदजी गदगद हो गए कि मेरे से बड़ा कोई प्रभु का भक्त नहीं है। फिर अपने गंतव्य की ओर निकल पड़े। जाते वक्त रास्ते में हनुमानजी मिले तो उन्हें कहा कि भगवान के पास एक पुस्तक है, जिसमें अपने भक्तों के नाम लिखे हैं पर तुम्हारा नाम नहीं है, लेकिन दूसरी बार फिर नारद प्रभु नारायण के पास जाते हैं। नारदजी ने फिर प्रभु से पूछा की दूसरी पुस्तक कौन सी है।
प्रभु नारायण ने कहा कि जानते हो जो भक्त रोज मुझे याद करते हैं उनके नाम लिखे थे पहली पुस्तक में, पर इस दूसरी पुस्तक में उनका नाम लिखा है जिनको मैं रोज याद करता हूं। नारदजी ने कहा ऐसा क्यों भगवान। नारायण ने कहा क्योंकि एक पके फल है और तुम मौसम के हिसाब से हो। उस तरह भक्ति तो सब करते हैं, लेकिन फल समय आने पर ही मिलता है। उसमें देर होती है पर अंधेर नहीं। आयोजक महिला मंडल की चंदा शर्मा व भक्तों ने व्यासपीठ की महाआरती कर पूजा-अर्चना की।
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