आहार की शुद्धता मानसिक शुद्धता की परिचायक है। यथार्थ ही कहा गया है कि जैसा आहार होगा, वैसा ही विचार होगा और जैसा विचार बनेगा वह व्यवहार में उतर ही जायेगा।
अर्थात हमारा व्यवहार कहीं न कहीं हमारे आहार से भी संबंध रखता है।
हम यदि मादक पदार्थों का सेवन करेंगे तो हमारा व्यवहार अपनी शुचिता खोने लगेगा।
शुद्ध सात्विक आहार हमारे भीतर सात्विक गुणों का विकास करता है। इसके विपरीत तामसिक आहार उत्तेजना और क्रोध आदि अवगुणों को पोषण देता है।
आहार केवल खाद्य एवं पेय पदार्थों तक ही सीमित नहीं है। मनुष्य का आहार संगीत कला और साहित्य भी है।
अच्छे साहित्य की खुराक मनुष्य के मन और मस्तिष्क को निर्मल करती है। उसे मानसिक रूप से सबल बनाती है। संगीत व्यक्ति को अदभुत ऊर्जा प्रदान करता है।
सात्विक भोजन से मन में शुद्ध विचार आते हैं और शुद्ध विचारों से मन शांत होता। गाय का दूध तथा गोघृत, छाछ, मक्खन, फल, सूखे मेवे, अंकुरित अन्न, हरी पत्तेदार सब्जियां, बिना लहसुन-प्याज का हल्का सुपाच्य ताजा बना भोजन सात्विक आहार के अंतर्गत आता है।
अतः हमें अपने आहार का उचित ध्यान देना चाहिए, चाहे वह किसी भी रूप में क्यों न हो।
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