आदिवासी परिवारों के लिए आजीविका का साधन भी है चारौली

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– सूखे मेवे में शामिल हैं चारौली, कच्चा फल 30-40 रु किलो में बिक रहा बाजार में
बेहरी। चारौली का नाम तो सभी ने सुना होगा और खीर सहित अन्य व्यंजनों में इसे खाया भी होगा। स्थानीय लोग चारौली को चिरौंजी भी कहते हैं। ये फल के बीज की गिरी है, जो खीर, मिठाई, आइस्क्रीम आदि का स्वाद बढ़ाती है। चारौली जिस पेड़ पर लगती है, वे क्षेत्र के जंगल में पाए जाते हैं। बाजार में क्वालिटी के अनुरूप 1200 से 1800 रुपए किलो तक बिकने वाला यह सूखा मेवा स्थानीय आदिवासी परिवारों के लिए आजीविका का साधन भी है।

बेहरी सहित अन्य गांवों में कुछ दूरी चलने पर ही जंगल की शुरुआत हो जाती है। रामपुरा, अंबापानी, बढ़पुरा, कूपगांव, मालीपुरा आदि गांवों के आदिवासी चारौली फल तोड़कर जंगल से ला रहे हैं। यह हरी चारौली भी खाने में स्वादिष्ट लगती है। ऐसे में यह हरी चारौली भी बाजार में बिकने के लिए आ रही है।

आदिवासी परिवारों को इसका 40 से 50 रुपए किलो के हिसाब से भाव मिल रहा है। कई परिवार पके हुए फल को हाथ घट्टी में दलकर उसकी गिरी निकालकर बाजार में बेचेंगे। गिरी के भाव भी इन्हें अच्छे मिलेंगे। एक पेड़ पर 14 से 15 किलो चारौली एकत्रित हो जाती है।

गौरतलब है कि चिरौंजी या चारौली के पेड़ जंगल में बड़ी संख्या में हुआ करते थे, लेकिन समय के साथ कटाई होने से इनकी संख्या में कमी आई है। सड़कों व तालाब के निर्माण के दौरान भी पेड़ों की कटाई हुई। हालात तो यह है कि इसी क्षेत्र के अधिकतर बच्चों को इसकी जानकारी तक नहीं है कि चारौली पेड़ पर उगती है।

विलुप्त प्रजाति में शामिल है-
इस संबंध में बागली वन विभाग के एसडीओ अमित सोलंकी का कहना है अचार या चारौली के पेड़ को विलुप्त प्रजाति में शामिल किया गया है। आने वाले समय में नर्सरी में इन पौधों को तैयार कर किसानों को वितरित किया जाएगा। जो वनांचल में रहते हैं तथा जिन लोगों को वन भूमि पट्टा अधिकार मिले हैं, उनकी जमीनों पर 20 प्रतिशत इस प्रकार का जंगल खड़ा करने के निर्देश दिए जाएंगे।

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