महाराणा प्रताप ने घास की रोटी खाकर संघर्ष किया, किंतु कभी मुगलों की अधीनता स्वीकार नहीं की- साेलंकी

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जयंती पर वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप को याद किया, उनके जीवन चरित्र से ली प्रेरणा

टोंकखुर्द (नन्नु पटेल) । महाराणा प्रताप का जन्म हिंदू पंचांग के अनुसार ज्येष्ठ शुक्ल तृतीया विक्रम संवत 1597 को हुआ था। उस समय मुगलों का शासन हमारे देश के अधिकांश भागों पर था। महाराणा प्रताप की 4 पीढ़ियों का समय सतत मुगलों से संघर्ष करते हुए बीता। महाराणा कुंभा, महाराणा सांगा, महाराणा उदय सिंह एवं महाराणा प्रताप, किंतु उन्होंने कभी मुगलों की अधीनता स्वीकार नहीं की।

ये विचार वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप की जयंती पर प्रताप परिसर ठिकाना खरैली में आयोजित कार्यक्रम में मुख्य वक्ता कुशालसिंह सोलंकी ने व्यक्त किए। उन्होंने कहा, कि मेवाड़ की स्वतंत्रता अकबर की आंखों में कांटों की तरह चुभ रही थी। उसने मेवाड़ पर कई आक्रमण किए, किंतु उसे हर बार हार का मुंह देखना पड़ा। महाराणा प्रताप ने जंगलों, घाटियों में रहकर व घास की रोटी खाकर मुगलों से संघर्ष किया, किंतु कभी परतंत्रता स्वीकार नहीं की। उन्होंने समाज और राष्ट्र के लिए अपना पूरा जीवन समर्पित कर दिया। महाराणा प्रताप के जीवन चरित्र को हमें अपने जीवन में उतारना चाहिए और समाज और राष्ट्र के उत्थान के लिए तत्पर रहना चाहिए।

कार्यक्रम के मुख्य अतिथि समरथसिंह सोलंकी, कमलसिंह सोलंकी, शिवपालसिंह सोलंकी, देवेंद्रसिंह सोलंकी, जनपद सदस्य डॉ. ओमेंद्रसिंह सोलंकी थे। अतिथियों ने महाराणा प्रताप की तस्वीर पर माल्यार्पण एवं दीप प्रज्वलन कर कार्यक्रम का शुभारंभ किया। सभी ने महाराणा प्रताप के जीवन मूल्यों पर अपना उद्बोधन दिया। इस अवसर पर हरनामसिंह खींची, जवानसिंह बावड़ी, सरदारसिंह सोलंकी, शंकरसिंह सोलंकी, दयालसिंह सोलंकी, शैलेंद्रसिंह सोलंकी, अजयसिंह सोलंकी, ब्रजपाल सिंह खिंची, डॉ. विजेंद्र सिंह, दिलीपसिंह खिंची, कमल शर्मा, अरविंदर सिंह, ईश्वर सिंह, तकेसिंह सहित बड़ी संख्या में लोग मौजूद थे।

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