पुष्पगिरि तीर्थ पर क्रांतिवीर मुनि प्रतीक सागर महाराज ने दिए प्रेरणादायी संदेश
देवास। देश और समाज के विकास के लिए अहंकार को छोड़कर स्वाभिमान को जिंदा रखकर जीवन जीना जरूरी है। अभिमान तुम्हें उठने नहीं देगा और स्वाभिमान तुम्हें गिरने नहीं देगा। जिसकी नीति अच्छी होगी उसकी उन्नति हमेशा होगी। मैं श्रेष्ठ हूं यह आत्मविश्वास है, लेकिन मैं ही श्रेष्ठ हूं यह अहंकार है। गणाचार्य पुष्पदंत सागर महाराज की छत्रछाया में पुष्पगिरि तीर्थ पर क्रांतिवीर मुनि प्रतीक सागर महाराज ने भक्तों को संबोधित करते हुए कहा कि जीवन में एक संकल्प बनाना चाहिए कि हम दूसरे को बदलने की कोशिश नहीं करेंगे अपितु स्वयं को बदलने का प्रयास करेंगे। जिसने संसार को बदलने की कोशिश की वह हार गया, जिसने खुद को बदलने की कोशिश की वह जीत गया। वक़्त की गर्दिश का कभी गम मत करो हमेशा भरोसा रखो फिर से फिजा महकेगी की और तुम्हारे सारे सपने सच होंगे।
मुनिश्री ने आगे कहा कि तीर्थंकर महापुरुषों का जीवन प्रेम से भरा होता है, इसीलिए उनके शरीर के रक्त का रंग सफेद होता है। जन्म होने पर दूध के समान जल से अभिषेक होता है। वैराग्य उत्पन्न होने पर बैराग्य की अनुमोदना करने के लिए लोकांतिक देव आते हैं जिनके वस्त्रों रंग सफेद होता है, क्योंकि बैर-घृणा कालिमा को जन्म देती है, प्रेम और शांति
धवलता प्रदान करती हैं। प्रेम के आंगन में भय नहीं होता है, वहां निर्भरता होती है। निर्भय होकर किए जाने वाले कार्य मंजिल तक पहुंचते हैं। अपने जीवन को हमेशा खुली किताब बनाकर जिओ, जैसे बाहर से दिखते हो ऐसे ही अंदर से रहो। जिनकी कथनी और करनी में अंतर होता है, उनके ऊपर लोग विश्वास करना छोड़ दिया करते हैं।
मुनिश्री ने आगे कहा कि आज समय नहीं बदला है लोगों के सोचने का ढंग बदल गया है। पहले लोग हमारा परिवार समझते थे मगर आज मेरा परिवार मानकर जीने लगे। जिस कारण रिश्तों में जो मिठास था, वह आज कड़वाहट में बदल गया है। आज रिश्तों को यूज किया जाता है और वस्तुओं से प्यार किया जाता है, जबकि रिश्तों में प्यार होना चाहिए और वस्तुओं का उपयोग किया जाना चाहिए।
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