– धार्मिक स्थल पर प्रकृतिप्रेमियों ने लगाए 500 फलदार एवंं छायादार पौधे
बेहरी (हीरालाल गोस्वामी)। धार्मिक स्थल धावड़िया गादी क्षेत्र के 60 गांवों की आस्था का केंद्र है। बेहरी-धावड़िया चौपाल के मध्य स्थित धावड़िया गादी वर्षा देव कांगरिया महाराज की प्रतीक गादी है। यह स्थल अपने धार्मिक महत्व के साथ ही प्राकृतिक सुंदरता एवं पर्यावरण संरक्षण के लिए भी अपनी पहचान बना रहा है। प्रकृति के चहेतों ने 500 पौधे लगाकर यहां हरित क्रांति का उद्भव किया है। पांच साल पूर्व लगाए ये पौधे अब पेड़ बनने की ओर तेजी से अग्रसर हैं।
कांगरिया महाराज को वर्षा के देव कहा जाता है। इस स्थान पर 200 साल पुराने पीपल-इमली के पेड़ के नीचे मिट्टी से निर्मित ओटला है, जो भक्तों की आस्था का केंद्र है। करीब पांच साल पूर्व यज्ञ संचालन समिति ने क्षेत्रीय श्रद्धालु शांतिलाल पाटीदार के साथ मिलकर इस स्थल को हराभरा करने का संकल्प लिया और वह कर दिखाया जो शासन-प्रशासन लाखों रुपए खर्च करके भी नहीं कर पाए। परिसर के लगभग ढाई बीघा में 500 फूलदार, छायादार एवं फलदार पौधे लगाकर इन्होंने इस स्थान को हराभरा कर दिया। समिति सदस्यों ने जून-जुलाई 2017 में व्यवस्थित रूप से गड्ढे खोदे और उनमें केरल से मंगवाए गए आम, जाम, जामुन, इमली, अनार, सीताफल, अशोक, बरगद, नीम आदि के पौधों का रोपण किया। समय-समय पर इन्हीं खाद भी दिया। नियमित रूप से पानी से सिंचित किया। तार फेंसिंग की गई, ताकि इन पौधों को कोई नुकसान ना पहुंचा सके। पानी के लिए कुएं की सफाई की, ताकि गर्मी के दिनों में पौधों को पानी पिलाने में कोई परेशानी ना हो। प्रकृतिप्रेमी शांतिलाल गर्मी के दिनों में अपना अधिकतर वक्त इन पौधों की देखरेख में लगाते रहे। उन्होंने एक-एक पौधे तक पानी पहुंचाने का कार्य किया।
समिति से जुड़े रामपुरा के पवन राठौर पाजरिया, सौदान रावत, अनोप रावत, पिंटू रावत, प्रताप बछानिया, भंवर राठौर, सरवन राठौर आदि ने बताया कि यहां पर 150 किस्म के विभिन्न पौधे लगाए थे। ये अब वृक्ष बनने की ओर है। आरंभ से ही हम सभी ने निश्चय किया था कि एक भी पौधा लापरवाही से मरे नहीं। वर्तमान में सभी 500 पौधे यहां दिखाई दे रहे हैं। यदि सबकुछ ठीक रहा तो यहां इतनी सघन वाटिका बन जाएगी, जिसके चलते सूर्य का प्रकाश जमीन पर आना मुश्किल रहेगा। इस वाटिका को तैयार करने में श्रद्धालुओं का विशेष सहयोग रहा। सदस्यों ने बताया कि जब हमने शुरुआत की थी तो यहां कंटीली झाड़ियां, बबूल के कांटे वाले वृक्ष और खाकरे के ठूठ दिखाई देते थे। हमने परिसर को साफ किया और सभी के सहयोग से यह क्षेत्र हराभरा हो गया।
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