देवास। मोती बंगला स्थित प्रताप गार्डन में व्यास परिवार द्वारा आयोजित श्रीमद् भागवत कथा में सैकड़ों श्रद्धालु रोजाना भाग लेकर आध्यात्मिक ज्ञान की गंगा में डुबकी लगा रहे हैं। कथा का वाचन अंतरराष्ट्रीय आध्यात्मिक गुरु पं. जितेंद्र महाराज दत्त अखाड़ा उज्जैन द्वारा किया जा रहा है।
कथा के तीसरे दिन शिव-पार्वती विवाह की कथा बड़ी धूमधाम और भक्तिमय वातावरण में संपन्न हुई।
पं. जितेंद्र महाराज ने ध्रुव की भक्ति का उल्लेख करते हुए अपने प्रवचन में कहा, कि सच्ची भक्ति वह है जो निस्वार्थ हो और केवल भगवान को समर्पित हो। उन्होंने ध्रुव चरित्र की कथा सुनाई, जिसमें बालक ध्रुव ने अपने पिता की गोद में बैठने की इच्छा व्यक्त की। लेकिन उसकी माता ने समझाया कि मनुष्य की गोद में बैठने से बेहतर है कि वह भगवान नारायण की गोद में स्थान पाए। इस प्रेरणा से ध्रुव ने कठोर तपस्या का मार्ग चुना और पांच वर्ष की आयु में जंगल में जाकर तपस्या करने लगे।
नारदजी ने दिया मंत्र-
पंडित महाराज ने बताया कि तपस्या के दौरान नारदजी ने ध्रुव को मंत्र दिया, ॐ नमो भगवते वासुदेवाय नमः। इस मंत्र के जाप से ध्रुव ने अपनी भक्ति को और प्रबल किया। गंगा तट पर तपस्या करते समय, मां गंगा ने ध्रुव से प्रकट होकर विनती की कि वह वहीं रुके और उनकी गंगा जलधारा को पवित्र करे। गंगा मां ने कहा, कि ध्रुव जैसे भक्त के स्नान से उनका मैल भी धुल जाएगा। ध्रुव ने गंगा मां की बात मानी और अपनी तपस्या जारी रखी।
भगवान नारायण प्रकट हुए-
ध्रुव की तपस्या इतनी कठोर थी कि ब्रह्मा और इंद्र के सिंहासन डगमगाने लगे। अंततः भगवान नारायण ध्रुव की भक्ति से प्रसन्न होकर प्रकट हुए। ध्रुव ने भगवान नारायण से कोई सांसारिक इच्छा व्यक्त नहीं की, बल्कि केवल उनकी गोद में स्थान मांगा। भगवान नारायण ने ध्रुव को अपनी गोद में बैठाकर स्नेहपूर्वक चूम लिया। महाराज ने इसे सच्ची भक्ति का सबसे सुंदर उदाहरण बताया।
कथावाचक का किया सम्मान-
इस भक्ति पर्व में आयोजन समिति के विनोदिनी रमेश व्यास, जयंतसिंह राठौर, अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक ओपी श्रीवास्तव, सीएसपी अमर येवले, लायन क्लब के अध्यक्ष प्रमोद कुमार सहित कई गणमान्य अतिथियों ने पंडित जितेंद्र महाराज का सम्मान किया। उन्होंने व्यासपीठ की पूजा-अर्चना की और महाआरती में भाग लिया। भगवान सिंह चावड़ा ने संचालन किया।
भक्ति में ओतप्रोत हुए श्रद्धालु-
श्रद्धालुओं ने पंडित महाराज के प्रवचनों में गहरी आस्था और भक्ति दिखाई। कथा के माध्यम से ध्रुव की निष्ठा और भगवान नारायण के प्रति अटूट प्रेम ने सभी को ओतप्रोत किया।
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