श्रीमती तेज कुंवर बाई सैंधव की प्रथम पुण्यतिथि पर उनके भतीजे विजेंद्रसिंह ठाकुर ने उन्हें समर्पित कविता लिखी है। इस कविता के माध्यम से मां के महान व्यक्तित्व का वर्णन किया है।
कभी ये सोचा न था तेरे बिना जियेंगे कैसे, तेरे बिन इस मतलबी दुनिया से लड़ेंगे कैसे.
सदमा गहरा है की तुम साथ नहीं माँ, पर कोई लम्हा, पल नहीं जिसमें तुम नहीं माँ.
हर जज़्बात में तुम हर आवाज में तुम, और मेरी हरेक सांस में तुम हो माँ.
पापा की डांट से बचकर तेरी बाहों में समाना याद आता है.
मां वो बचपन का तेरी गोद में गुजरा ज़माना याद आता है.
जब तू चांदनी रातों में लोरियां गाकर सुलाती थी.
कितना सुकून मिलता था जब तू पीट को मेरी थपथपाती थी.
मेरा चंदा मेरा बेटा मेरा लाल कहकर बुलाती थी.
माँ गर ज़रा भी चोट मुझे आती तो तू भी आंसुओ में भीग जाती थी.
और तकलीफ़ ज़रा भी होती मुझे तू पूरी रात मेरे पास बैठकर बिताती थी।
– विजेंद्रसिंह ठाकुर, टोंकखुर्द
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