भारतीय संस्कृति को बचाने में नारी जाति का विशेष योगदान है- पूजा शर्मा

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  • कंस वध व रुक्मिणि विवाह का किया विस्तारपूर्वक वर्णन

हाटपीपल्या (नरेंद्र ठाकुर)। श्रीमद् भागवत ज्ञान गंगा कथा के छठवें दिन कथावाचक पूजा शर्मा पुंजापुरा ने कृष्ण-रुक्मिणि विवाह प्रसंग का वर्णन करते हुए कहा कि आधुनिकता की चकाचौंध में ईश्वर को मत भूलिएं। वैदिक संस्कृति के अनुसार नारी मां के रूप में बालक के लिए प्रथम गुरु है। वह अपने बच्चे को अच्छे संस्कार देकर सभ्य नागरिक बनाती है। बेटे के साथ बेटी को खूब पढ़ाकर शिक्षित, सभ्य बनाए व बेटी का उचित संरक्षण करें।

पूजा शर्मा ने कहा कि कंस को मां भगवती से चेतावनी मिली पर उसकी अज्ञानता ने ईश्वर को नहीं स्वीकारा फलस्वरूप उसका अंत हो गया। हमारी विलासिता, भोगवाद हमें ईश्वर का अनुभव होने ही नहीं देती। जब तक जीवन में सरलता व अच्छे विचार नहीं होंगे तब तक आपका धन-सुख अर्थ हीन है।

पूजा शर्मा ने श्रीकृष्ण-रुक्मिणि विवाह प्रसंग का वर्णन करते हुए कहा कि भले ही रुक्मिणि ने प्रेमविवाह किया, पर संस्कारों की मर्यादाओं के अधीन रहकर किया। आगे बताया कि परिवार में स्त्री ही संस्कारों की धुरी है क्योंकि एक बेटी दो कुलों का उद्धार करती है। यदि बेटियां शिक्षित और जागरूक होंगी तो वे न केवल अपने परिवार को, बल्कि विवाह के बाद अपनी संतान को अच्छे संस्कार देंगी तथा ससुराल के लोगों को भी जागरूक करेंगी। उन्होंने कहा कि एक नारी मां, दादी, नानी, बहन, धर्मपत्नी आदि विभिन्न रूपों में पुरुष समाज को नशाखोरी, पाखंड, अंधविश्वास, भेदभाव जैसी बुराइयों से दूर करने में जिम्मेदारी निभा सकती है। पूजा शर्मा ने कहा कि आजकल आधुनिकता की दौड़ में पाश्चात्य सभ्यता देव संस्कृति पर हावी होती जा रही है, सभी पढ़-लिखकर आधुनिक तो बनना चाहते हैं पर संस्कारित नहीं, जिससे हर व्यक्ति प्रभावित होकर सनातन संस्कृति व परंपरा से दूर हो रहा है। श्रीकृष्ण-रुक्मिणि विवाह की सुंदर झांकी में श्रद्धालुओं ने कन्यादान किया।

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