अन्नकूट महोत्सव दीपावली के एक दिन बाद से शुरू होकर कार्तिक पूर्णिमा तक चलता है- यज्ञाचार्य पं. कनिष्ठ द्विवेदी

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बेहरी (हीरालाल गोस्वामी)। वर्तमान में कई मठ मंदिरों में सभी देवी-देवताओं को अर्पित 56 भोग अन्नकूट महोत्सव भोजन प्रसादी का कार्यक्रम निरंतर जारी है। कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर क्षेत्र के प्रसिद्ध मनकामेश्वर भोमियाजी मंदिर में बड़े रूप में अनुकूल महोत्सव मनाया गया। यह परंपरा विगत 22 वर्षों से जारी है।

ब्रह्ममुहूर्त में अभिषेक कर छप्पन भोग लगाकर अन्नकूट महोत्सव मनाया गया। क्षेत्र में कई जगह पर यह महोत्सव मनाया गया। यज्ञ आचार्य पं. कनिष्ठ द्विवेदी ने बताया कि बृजवासी भगवान इंद्र की पूजा कर रहे थे तब भगवान कृष्ण ने ग्रामीणों से पूछा भगवान इंद्र की पूजा क्यों करते हैं तब विद्वानजनों ने बताया कि इंद्र देवता हमें वर्षा देते हैं और वर्षा से प्रकृति परिवर्तित होती है और हरियाली आती है। गोवंश के लिए चारा आदि उपलब्ध होता है, तब भगवान कृष्ण ने कहा गोवर्धन पर्वत भी हमें बहुत कुछ औषधि और गोवंश को खाने के लिए चारा देता है। हम गोवर्धन पर्वत की पूजा करें तभी से गोवर्धन पर्वत की पूजा दीपावली के 1 दिन बाद होने लगी, तब भगवान इंद्र ने क्रोधित होकर बहुत बारिश की। भगवान श्रीकृष्ण ने चींटी ऊंगली पर गोवर्धन पर्वत को उठाकर सभी नगरवासियों की रक्षा की।

56 bhog

उस समय सभी एक स्थान पर एकत्रित थे और कई प्रकार के व्यंजन बनाकर अन्नकूट महोत्सव मनाया गया। तभी से भगवान कृष्ण को अर्पित छप्पन भोग महोत्सव अन्नकूट महोत्सव के नाम से प्रचलन में आ गया और पूरे क्षेत्र में दीपावली के एक दिन बाद से पूर्णिमा तक यह महोत्सव मनाया जाने लगा। छप्पन भोग से तात्पर्य यहां पर यह है कि जब गोवर्धन पर्वत के नीचे सभी बृजवासी एकत्रित थे तब सभी प्रकार की औषधि से युक्त फलफूल और अनाज को उबालकर या कूटकर बनाया गया, जिससे कई प्रकार के व्यंजन बने व छप्पन भोग का प्रचलन आया।

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भोमियाजी मंदिर परिसर में यज्ञ आचार्य पं. द्विवेदी, चंद्रप्रकाश शास्त्री, मुकेश शर्मा, दीपक उपाध्याय, मनमोहन शर्मा, नारायण शास्त्री, विद्याधर वैष्णव सहित 101 ब्राह्मणों द्वारा अभिषेक-पूजन संपन्न कराया गया। इस धार्मिक महोत्सव में बेहरी, बागली, चापड़ा, छतरपुरा, नयापुरा, हॉटपीपल्या, अमरपुरा, डबलचौकी, इंदौर-देवास आदि स्थानों के श्रद्धालु उपस्थित रहे। मंदिर में 56 भोग लगाकर भंडारा किया गया जो देर रात तक चलता रहा।

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