रात तीन बजे से उठकर बना रहे मिट्टी के दीपक

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  • दीपावली से पहले मांग बढ़ी, बाहर से आ रहे हैं व्यापारी खरीदने के लिए

देवास। दीपावली का पर्व नजदीक है। मिट्टी के दीपक बनाने वाले कुंभकार मांग बढ़ने पर रात तीन बजे से उठकर दीपक बना रहे हैं। इधर मौसम में बार-बार बदलाव होने से पंखे-कूलर की हवा में भी दीपक सूखा रहे हैं। हालांकि अब तीन-चार दिनों से मौसम साफ है और तेज धूप होने से दीपक बनाने वालों ने राहत की सांस ली है। चाइनिज कलात्मक दीपक के दौर में भी स्थानीय कुंभकार परिवारों के यहां दीपक खरीदने के लिए आसपास के शहरों से व्यापारी आ रहे हैं।

देवास से करीब 10 किमी दूर शिप्रा में कई परिवार वर्षों से मिट्टी के दीपक सहित अन्य सामग्री बनाने का धंधा कर रहे हैं। इनके यहां दीपावली के तीन-चार महीने पहले से ही दीपक बनाने की शुरुआत हो जाती है। इन दिनों सुबह से लेकर रात तक दीपक बनाने का कार्य हो रहा है। दीपक की खरीदी के लिए कई व्यापारी इन्हें एडवांस भी देकर गए थे। दीपावली के नजदीक आने तक भाव में बढ़ोतरी हो गई है, लेकिन दो-ढाई महीने पहले तक 500 रुपए में हजार दीपक तक बेचे गए। अब 600 से 700 रुपए में हजार दीपक बेचे जा रहे हैं।

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हमें मेहनत की पूरी कीमत नहीं मिलती-

पीढ़ी-दर-पीढ़ी दीपक बनाने वाले ओमप्रकाश व कैलाश प्रजापत ने बताया लोगों को लगता है कि हमारे काम में मेहनत नहीं है। हम सुबह तीन बजे से उठकर काम पर लगते हैं। दिनभर में बमुश्किल हजार दीपक बना पाते हैं। कच्चा काम है तो टूट-फूट भी होती है। हमें मेहनत की पूरी कीमत नहीं मिलती।

दीपक सूखाने में आई समस्या-

भीम प्रजापत ने बताया हम होली के बाद से दीपक बनाने लग जाते हैं। बारिश के दिनों में सूखाने में समस्या आती है। इस बार तो बारिश का वक्त लंबा चलता रहा। हमें पंखे और कूलर लगाकर दीपक सूखाना पड़े। बिजली का खर्च बढ़ने के बावजूद दीपक की कीमत नहीं बढ़ी।

डिजाइन वाले दीपक मांगते हैं-

दिनेश प्रजापत ने बताया हमारे यहां इंदौर-देवास सहित आसपास के शहरों से व्यापारी खरीदी के लिए आते हैं। हमसे डिजाइन वाले दीपक मांगते हैं। डिजाइन वाले दीपक के लिए मिट्टी अलग आती है और अगर बाहर से मिट्टी लेकर आए तो हमें लागत नहीं निकलेगी। इस बार सामान्य दीपक भी बिक रहे हैं।

नेमीचंद प्रजापति ने बताया कि दिनभर की मेहनत में 500-700 दीपक ही बना पाते हैं। हमें इलेक्ट्रिक चक्का खरीदना पड़ा, इससे हमारा काम आसान हुआ है। हमें माटी कला बोर्ड से अगर उपकरण खरीदने के लिए सहायता मिल जाए तो सुविधा हो सकेगी।

आर्थिक सहायता करना चाहिए-

समाज के राजेश बराना प्रजापति का कहना है कि माटी कला बोर्ड का गठन हुआ है, लेकिन स्थानीय कुंभकार परिवारों को किसी तरह की मदद नहीं मिलती। इलेक्ट्रिक चक्का भी कुंभकार परिवारों को खरीदना पड़ता है। हमारा अाग्रह है कि सरकार कुंभकार परिवारों की आर्थिक स्थिति को मजबूत करने के लिए योजना प्रारंभ करें। उन्हें उपकरण खरीदने के लिए आर्थिक सहायता भी प्रदान करें।

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