सोयाबीन के कम उत्पादन ने बढ़ाई किसानों की चिंता

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लगातार घाटे का सौदा बना पीला सोना, लागत भी नहीं निकल रही

बेहरी (हीरालाल गोस्वामी)। कुछ वर्ष पहले तक सोयाबीन की खेती लाभदायक मानी जाती थी। इसके लाभ को देखते हुए इस फसल को पीला सोना Gold भी कहा गया। अब यह पीला सोना किसानों को घाटा दे रहा है। जिस सोने से आभूषण तैयार किए जाते हैं, वह 25 हजार रुपए तौला से 75 हजार रुपए तक पहुंच गया, लेकिन खेती का यह पीला सोना लगातार किसानों के लिए घाटे का सौदा साबित हो रहा है।

इस वर्ष सोयाबीन की फसल आरंभ के साथ कई दिनों तक अच्छी दिखाई दे रही थी। सोयाबीन के लहलहाते पौधे देखकर किसानों का मानना था कि इस वर्ष पिछले कई वर्षों का रिकॉर्ड टूट जाएगा और भरपूर उत्पादन होगा। किसान प्रति बीघा डेढ़ गुना उत्पादन की उम्मीद किए हुए थे, लेकिन अतिवर्षा ने किसानों के अरमानों पर पानी फेर दिया। डेढ़ गुना तो उत्पादन हुआ नहीं बल्कि पिछले साल की तुलना में आधा उत्पादन भी नहीं हो रहा है।

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सितंबर माह के अंतिम दौर में जब फसल पूरी तरह से पकने का समय आया तो लगातार आठ दिनों की बारिश ने फसल को तहस-नहस कर दिया। अब किसानों के पास सिर्फ खेत साफ करने के अलावा कुछ नहीं रहा। उत्पादन के रूप में प्रति बीघा एक से डेढ़ क्विंटल सोयाबीन निकल रही है। यह सोयाबीन भी क्वालिटी में कमजोर है। ऐसे में इसके मंडी में भाव भी कम मिलेंगे। सोयाबीन की ऐसी कमजोर स्थिति कई वर्षों बाद हुई है।

लागत भी नहीं निकल रही-

इधर सोयाबीन कटाई के लिए मजदूर भी नहीं मिल रहे हैं। ठेका प्रथा में मजदूर प्रति बीघा से कटाई के 2000 से 2200 रुपए ले रहे हैं। हडंबा मशीन से कटाई के 1500 से 1800 रुपए प्रति घंटे के लग रहे हैं। ऐसे में किसान को समझ नहीं आ रही है कि वह आखिर क्या करें। आगामी रबी फसल के लिए खेत को साफ करना भी बहुत जरूरी है। किसान भोजराज दांगी, अजय पाटीदार, शिव नारायण पाटीदार, डॉ संतोष जाट, पवन पाटीदार आदि ने बताया कि सोयाबीन की खेती में इस बार फिर नुकसान हुआ है। खेत में घास लगी रहने देते तो फायदा हो जाता। सोयाबीन फसल की लागत भी नहीं निकल रही है। यह पूरी तरह से घाटे का सौदा हो गई है। किसानों ने बताया कि ना तो बीमा कंपनी वाले आ रहे हैं और ना ही राहत राशि के लिए अधिकारी। हम बहुत चिंतित है, क्योंकि बहुत नुकसान हुआ है। किसान विक्रम बागवान ने बताया कि हमारे आठ बीघा खेत में 6 क्विंटल सोयाबीन निकली है। यह सोयाबीन भी बारीक किस्म की है।

अंतरवर्ती फसल पर जोर देना होगा-

कम उत्पादन के संबंध में पूर्व कृषि विस्तार अधिकारी सुरेंद्र उदावत का कहना है कि आने वाला समय मौसम परिवर्तन के साथ कम ज्यादा बारिश वाला रहेगा। इसके लिए किसान कभी भी एक ही फसल के सहारे ना रहे। अंतर्वर्ती फसल लगाए ताकि किसी ना किसी फसल में फायदा होने के साथ जलवायु परिवर्तन का नुकसान नहीं हो। उन्होंने बताया कि वर्तमान में कम पानी वाली फसलें भी किसान लगा सकते हैं। अलग-अलग रकबे में क्राफ्ट खेती कर खेती को हिस्से में बांटते हुए सभी प्रकार की फसलें लगाएं। वर्तमान में उड़द एवं मूंगफली बेहतर उत्पादन में निकल आती है। अधिक पानी में भी इन फसलों का उत्पादन अच्छा रहता है, इसलिए किसानों को फसलें अधिक मात्रा में एवं अंतर्वर्ती रूप में खेतों में लगाना जरूरी रहेगा। अगर इस ओर ध्यान नहीं दिया तो खेती लाभ का धंधा नहीं बन सकती।

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