बेहरी (हीरालाल गोस्वामी)। वर्तमान में श्राद्ध पक्ष चल रहा है। अंतिम दो दिनों के बाद सर्व पितृ अमावस्या आने वाली है। इस दिन सभी पितरों का तर्पण विधि-विधान से किया जाता है लेकिन अधिकतर परिवार अपने दिवंगत परिजनों की तिथि पर घर पर श्राद्ध पूजन करते हैं। इस पूजन को करते समय साधारण पूजा पद्धति के साथ-साथ गीता का 16वां अध्याय एवं सातवें अध्याय को यदि परिजन का कोई सदस्य पढ़कर संकल्प लेकर उन अध्यायों का फल संबंधित दिवंगत आत्मा को समर्पित करता है तो उक्त आत्मा को सद्गति मिलती है।
उक्त बातें पं. अंतिम उपाध्याय ने कहते हुए बताया कि सनातन धर्म ही सद्गति का उत्तम मार्ग है। उन्होंने कहा कि यदि संभव हो तो उस तिथि पर किसी ब्राह्मण को बुलवाकर गीता के 16वें अध्याय एवं सातवें अध्याय का पाठ करवाते हुए उक्त अध्यायों के फल को दिवंगत आत्मा को समर्पित करवाना चाहिए। ऐसा करने से दिवंगत आत्मा एवं दिवंगत परिजनों का आशीर्वाद संतुष्टि के साथ मिलता है। आधुनिकता के चलते अधिकतर परिवार श्राद्ध पक्ष तिथियों को भूल गए हैं और कोई भी पूजा पाठ या पितृ तर्पण जैसी विधि नहीं करते, जिससे उन्हें भविष्य में दुख मिलता है।
उक्त बातें पं. अंतिम उपाध्याय ने कहते हुए बताया कि सनातन धर्म ही सद्गति का उत्तम मार्ग है। हमारे सनातन धर्म में जीवन के पहले भी, जीवन के साथ भी और जीवन के बाद भी बहुत सारे सुख-शांति भरे जीवन व्यतीत करने वाले उपाय की जानकारी निहित है। जिस प्रकार गीता के 16वें अध्याय का फल गजेंद्र को देकर गजेंद्र मोक्ष किया गया एवं 7वें अध्याय का फल सर्प योनि वाले व्यापारी को देकर उसे सद्गति दिलवाई थी, उसी प्रकार हम भी अपने पूर्वजों के मोक्ष के लिए गीता के पाठ को पढ़ते रहे और उसका फल भटकती हुई पुण्य आत्माओं को समर्पित करते रहे।
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