– एक मुलाकात बागली के अनूठे पर्यावरण मित्र से, जिन्हें जुनून है पौधों को पेड़ बनाने का
बागली (हीरालाल गोस्वामी)। जो पर्यावरण के सच्चे हितैषी होते हैं, उन्हें तो अवसर चाहिए पौधे लगाने का। हम मंडे स्टोरी में बात कर रहे हैं, बागली के पर्यावरण मित्र सत्यनारायण गुर्जर की। इनका स्लोगन है ‘तुम मुझे अवसर दो, मैं पौधे लगाकर तुम्हे पेड़ बनाकर दूंगा’। यह स्लोगन अब इनके जीवन में गहराई तक बस चुका है। जहां भी अवसर मिला, सत्यनारायणजी पौधे लगाने पहुंच गए। खास बात यह है जो पौधे लगाए, पूरे जज्बे-जुनून के साथ पेड़ बनने तक उनकी सेवा की।
पौधों के पेड़ बनाने तक की दिलचस्प कहानी है सत्यनारायणजी की। बचपन से हरियाली के बीच पले तो प्रकृति से लगाव बढ़ता गया। नगर में उन्होंने कई जगह पौधे लगाए। ये पौधे अब राहगीरों को छांव दे रहे हैं और परिंदों का सुरक्षित आशियाना भी बन गए हैं। पौधों को वृक्ष बनाने के लिए अपनी अलग पहचान रखने वाले सत्यनारायणजी होटल व्यावसायी हैं, लेकिन पर्यावरण पर इनका ध्यान इस कदर केंद्रीत है कि 20 वर्षों में 25 से अधिक पौधों को उन्होंने वृक्ष बना दिया। नगरवासी इन्हें पर्यावरण मित्र कहते हैं।
सड़क के दोनों ओर नजर आते हैं बड़े-बड़े वृक्ष-
कन्या शाला से लेकर बीईओ कार्यालय तक दोनों ओर बड़े-बड़े वृक्ष दिखाई देते हैं। इनमें पीपल, गुलमोहर, इमली, अशोक, आम, नीम आदि शामिल हैं। अभी भी कुछ पौधे वृक्ष बनने की ओर अग्रसर हो रहे हैं। उनकी चाय दुकान के आसपास दर्जनभर पौधे सुरक्षित जालियों सहित लगे हुए हैं। बागली के हर महापुरुष की याद में चाहे पुण्यस्मरण दिवस हो या जन्मदिवस सत्यनारायणजी पौधे लगा चुके हैं। स्व. श्याम होलानी, कैलाश जोशी, कांतिलाल चौधरी, भागीरथ गुप्ता, अटलबिहारी वाजपेयीजी के स्मरण में पौधे लगाए। साथ ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, ज्योतिरादित्य सिंधिया, दीपक जोशी के जन्मदिन पर भी पौधे लगाए।
मैं नाम के लिए नहीं लगाता हूं पौधे-
सत्यनारायण गुर्जर कहते हैं मैं नाम के लिए पौधे नहीं लगाता और न ही पौधों की संख्या गिनता हूं। जो पौधे लगाए, वे पेड़ बन जाए इसी का प्रयास करता हूं। बस आप तो अवसर बताएं और हो सकें तो पौधा उपलब्ध कराएं। उसे वृक्ष बनाने की जिम्मेदारी मेरी है। अब तक कितने पौधों को पेड़ बनाया है, यह पूछने पर सत्यनारायणजी कहते हैं कि मैं गिनती तो नहीं करता, लेकिन शुरू-शुरू में 25 से अधिक पौधे लगाए थे, जाे रोड के साइड में है और वे पेड़ बन गए हैं। हम प्रकृति से बहुत कुछ लेते हैं और देने के लिए हमारे पास कुछ नहीं है। हम पौधे लगाकर कुछ कर्ज तो उतार ही सकते हैं। पर्यावरण मित्र की यह बात शासन-प्रशासन भी जानता है, इसलिए पौधों को सुरक्षित रखने के लिए नगर परिषद के कर्मचारी उन्हें जालियां उपलब्ध करवा देते हैं और गर्मी में पानी की व्यवस्था भी कर देते हैं।
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