कर्म का उत्तराधिकारी स्वयं व्यक्ति होता है- स्वामी रामनारायणजी

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जीवन में पांडवों जैसी विवशता आती है, तो कृष्ण आपके साथ आएंगे- स्वामी रामनारायणजी

देवास। समस्त मानव जगत के लिए मार्गदर्शक है गीता। व्यक्ति की संपत्ति के उत्तराधिकारी हो सकते हैं लेकिन कर्म का उत्तराधिकारी स्वयं व्यक्ति होता है।

यह विचार श्रीराम द्वारा में चल रही श्रीमद् भागवत कथा के समापन पर व्यासपीठ से महंत स्वामी रामनारायणजी ने प्रकट किए। उन्होंने कहा, कि जीवन में यदि पांडवों जैसी विवशता और कठिनाई आती है तो विश्वास रखिए कृष्ण भी आपके साथ आएंगे। इस अवसर पर वाग्योग चेतना पीठम बागली के 21 विद्यार्थियों ने सामूहिक गीता पाठ किया।

उन्होंने कहा, कि जब भी मन में दुविधा हो उस समय गीता का मार्गदर्शन लेना चाहिए। व्यक्ति का कर्म व्यक्ति को उसी प्रकार ढूंढ लेता है, जिस प्रकार सैकड़ों गायों के बीच उसका बछड़ा अपनी मां को ढूंढ लेता है। गीता के श्लोक, अध्याय और उनमें क्या-क्या है यह उन्होंने विस्तार से बताया। भगवद गीता में कुल 700 श्लोक हैं, जो भगवान श्रीकृष्ण और अर्जुन के बीच के संवाद के रूप में हैं। इन 700 श्लोकों में से श्रीकृष्ण ने 575 श्लोक बोले हैं। अर्जुन ने 84 श्लोक एवं संजय ने 40 श्लोक बोले हैं।

धृतराष्ट्र ने 1 श्लोक बोला है। भगवद गीता में श्रीकृष्ण के उपदेश अर्जुन को जीवन के मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करते हैं और भगवान के साथ जुड़ने के लिए मार्ग दर्शाते हैं। जो भी व्यक्ति निष्काम भाव से कर्म करता है वह कभी दुखी नहीं होता इसलिए अपने निर्धारित कर्तव्य को पूरी श्रद्धा के साथ करना चाहिए तो उसका निश्चित रूप से अच्छा फल ही मिलेगा है। रामद्वारा में चातुर्मास सत्संग नियमित चलता रहेगा, जिसका समापन दशहरा पर होगा। भागवत कथा के समापन अवसर पर भंडारा किया गया। इसमें सैकड़ों श्रद्धालुओं ने महाप्रसाद ग्रहण किया।

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