गुरु के वाणी विचारों को अपने जीवन में आत्मसात करें- भागवताचार्य पं. अजय शास्त्री

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bhagvat katha
देवास। गुरु का स्थान ऊंचा होता है। गुरु ही जीवन में गति व सांसारिक भवसागर से मोक्ष प्राप्त कराता है। गुरु के बराबर आसन लगाकर कभी नहीं बैठना चाहिए। गुरु का कभी जीवन में अनादर, अपमान नहीं करना चाहिए, क्योंकि गुरु ही ब्रह्मा, गुरु ही विष्णु और गुरु ही महेश है।
यह विचार व्यासपीठ से भागवताचार्य पं. अजय शास्त्री सियावाले ने रामी गुजराती माली समाज द्वारा बड़ा बाजार स्थित समाज के रामकृष्ण मंदिर में आयोजित सात दिवसीय श्रीमद् भागवत कथा के विश्राम अवसर पर व्यक्त किए। उन्होंने कहा, कि गुरु कोई साधारण इंसान नहीं है। शब्द ही गुरु है। इंसान चला जाता है पर गुरु कभी नहीं। अधिकतर समस्या आती है, तो हमारे द्वारा बोले गए शब्दों से ही आती है। जाने-अनजाने में जो शब्द हमारे द्वारा बोले जाते हैं, वह शब्द हमें दुखी कर देते हैं। शब्द को सुनकर दुख तो शब्द को सुनकर खुशी के आंसू भी छलक पड़ते हैं।
जो सद्गुरु ज्ञान दे रहे हैं, जो कथा सुना रहे हैं। वह सब बता रहे हैं कि भगवान की आराधना करें, भक्ति करें, लेकिन हम समझना ही नहीं चाहते। जो साधु-महात्मा हजारों सालों से भजन, सत्संग, कथा के माध्यम से हमें समझा रहे हैं, लेकिन हमने कभी उनके वाणी-विचारों को आत्मसात नहीं किया। अगर हम संत-महात्माओं के वाणी, विचारों को आत्मसात कर लें तो हमारा जीवन सफल हो जाएगा। प्रत्येक मानव अपने जीवन में सद्गुरु द्वारा बताए गए मार्ग पर चलकर अपने जीवन को धन्य करें।
इस दौरान पं. अजय शास्त्री ने कृष्ण-सुदामा चरित्र की भावपूर्ण व्याख्या कर श्रद्धालुओं को भाव-विभोर कर दिया। आयोजन समिति रामी गुजराती माली समाज के सदस्यों ने पं. शास्त्री का शाल, श्रीफल एवं नारियल भेंट कर स्वागत किया एवं व्यासपीठ की पूजा-अर्चना की। बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं ने कथा श्रवण कर धर्म लाभ लिया।

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