श्रीकृष्ण का जन्म जितना दुष्टों के संहार के लिए हुआ, उतना मानव के उद्धार के लिए भी- पं. अजय शास्त्री
देवास। भगवान श्रीकृष्ण का अवतार जितना दुष्टों के संहार के लिए हुआ है उतना ही मानव मात्र के उद्धार के लिए भी हुआ है। भगवान श्रीकृष्ण ने अवतार लेकर संसार को प्रेम की शिक्षा दी, समानता का उपदेश दिया।
यह विचार बड़ा बाजार स्थित रामी गुजराती माली समाज रामकृष्ण मंदिर में चल रही श्रीमद् भागवत कथा के चौथे दिन व्यासपीठ से पं. अजय शास्त्री सियावाले ने व्यक्त किए। उन्होंने कहा, कि स्वार्थ किसी को भी अंधा कर देता है। कंस अपनी बहन देवकी को अपने प्राणों से भी अधिक प्रेम करता था। यहां तक की विवाह के समय देवकी को स्वयं रथ में बिठाने गया, लेकिन जब आकाशवाणी हुई कि अरे ओ मूर्ख कंस जिस बहन को तू इतने प्रेम से विदा कर रहा है। उसकी ही आठवीं संतान तेरा काल बनकर जन्म लेगी यह सुनकर कंस ने अपने प्राणों से भी अधिक प्यारी बहन देवकी और वासुदेव को कारागृह में डाल दिया। भगवान श्रीकृष्ण का जन्म कारागृह में हुआ।
पं. शास्त्री ने कहा, कि इंद्रियों का राजा मन है। इस मन को भगवान के चरणों में अर्पित कर दो क्योंकि यह मन बड़ा चंचल है। मन में अनेक प्रकार के विचार उत्पन्न होते हैं। कभी-कभी इन विचारों में पड़कर मानव बुरे कर्म कर बैठता है, जिसका उसे जीवनभर पछतावा होता रहता है। इसलिए मन को वश में कर भगवान के श्री चरणों में लगाएं।
कथा के दौरान श्रीकृष्ण जन्मोत्सव धूमधाम से मनाया गया। जैसे ही भगवान श्री कृष्ण बाल रूप में कथा पंडाल में लाए गए श्रद्धालुओं ने ढोल-नगाड़े के साथ पुष्पवर्षा कर उत्साह के साथ स्वागत किया। रामी गुजराती माली समाज आयोजन समिति ने व्यासपीठ की पूजा-अर्चना कर आशीर्वाद लिया। सैकड़ों धर्मप्रेमियों ने कथा श्रवण कर धर्म लाभ लिया।
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