श्रीमद भागवत कथा में आचार्य कृपाशंकर शास्त्री ने दिए प्रेरणादायी संदेश
बेहरी (हीरालाल गोस्वामी)। जीवन में जाने-अनजाने में प्रतिदिन कई पाप होते हैं। इन पापों का ईश्वर के समक्ष प्रायश्चित करना ही एकमात्र मुक्ति पाने का उपाय है। वैराग्य मानव को ज्ञानी बनाता है। वैराग्य में मानव संसार में रहते हुए भी सांसारिक मोहमाया से दूूर रहता है। सत्संग में वह शक्ति है, जो व्यक्ति के जीवन को बदल देती है। अपने जीवन में क्रोध, लोभ, मोह, हिंसा, संग्रह आदि का त्यागकर विवेक के साथ श्रेष्ठ कर्म करने चाहिए।
यह विचार स्थानीय यादव धर्मशाला में श्रीमद भागवत कथा के तीसरे दिन आचार्य कृपाशंकर शास्त्री ने व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि कलियुग का स्वर्ण में वास माना गया है। इसका तात्पर्य यह नहीं है कि सोना पहनना ही छोड़ दे। अनैतिक तरीके से कमाया गए धन से खरीदा गया सोना, अन्याय, अत्याचार, चोरी से प्राप्त किए हुए सोना में ही कलियुग का वास होता है। ईमानदारी से कमाए धन से खरीदे गए सोने में तो भगवान का वास होता है।
आचार्यश्री ने शुक्रवार को श्रीमद भागवत कथा में कपिल चरित्र, सती चरित्र, ध्रुव चरित्र, जड़ भरत चरित्र, नृसिंह अवतार आदि प्रसंग सुनाए। इससे पूर्व यजमान श्यामला यादव की ओर से पूजा-अर्चना की गई। इसी प्रकार कथा स्थल पर रात 8 बजे से पं. प्रभुलालजी के मुखारविंद से देवनारायणजी की कथा भी हुई।
कथा में यादव समाज के वरिष्ठ शिवनारायण यादव, चंपालाल यादव, मनोज यादव, जुगल यादव, नंदकिशोर यादव, संतोष यादव, विनोद यादव, परसराम यादव, जगदीश यादव, रामेश्वर यादव, रवि यादव, पंकज यादव, मुकेश यादव, केशव यादव, राजेश यादव सहित बड़ी संख्या में श्रद्धालु उपस्थित थे।
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