– बड़े भैया सिर्फ नाम के बड़े भैया नहीं थे व्यवहार से भी बड़े भैया ही थे और कर्म से भी बड़े भैया थे
इंदौर। आज मिल मजदूरों के गरीबों के शोषित पीड़ित के और झोपड़ी में रहने वालों के बड़े भैया नहीं रहे। विष्णुप्रसाद शुक्ला बड़े भैया से मेरा संबंध 1960 में स्थापित हुआ, जब मैं रोजगार कार्यालय में नौकरी करता था और बड़े भैया मिल में काम करते थे। बाणगंगा में हम दोनों के घर पास-पास में है। तब से स्थापित हुए संबंध उनके जीवन की अंतिम सांस तक ऐसे ही कायम रहे। मेरे ही नहीं मेरे जैसे अनेकों कार्यकर्ताओं को बड़े भैया ने गढ़ा है। सन 1967 में पहली बार जब पार्टी ने मुझे पंधाना से चुनाव लड़ने हेतु टिकट दिया तो स्वर्गीय मोरु भैया गजरे जी ने मुझसे कहा कि नौकरी छोड़ के चुनाव लड़ना है। उस समय जब मैंने पहली बार चुनाव लड़ा तो आदरणीय बड़े भैया ने उस चुनाव में इतनी मेहनत की, कि मैं चुनाव जीतकर मध्यप्रदेश सरकार में वित्त मंत्री बन गया। उसके बाद मैंने जीवन में कभी पीछे पलटकर नहीं देखा और पलटकर नहीं देखने का एकमात्र कारण यह था कि चुनाव में पार्टी उम्मीदवार तो मुझे बनाती थी लेकिन चुनाव बड़े भैया लड़ते थे। चुनाव के दौरान चाहे प्रचार का प्रबंधन और आर्थिक प्रबंधन हो, बूथ प्रबंधन हो, वह सभी कार्य बड़े भैया के जिम्मे रहता था। वे सदैव मुझसे कहते थे कि, वर्मा जी आप तो सिर्फ जनसंपर्क करिए, बाकी सब मुझ पर छोड़िए। जब चुनाव का परिणाम आता था, तो लाखों वोटों के अंतर से जीत का परिणाम आता था। यही कारण था कि जब बड़े भैया इंदौर में क्षेत्र क्रमांक 02 से चुनाव लड़ते थे तो, मैं देवास-शाजापुर छोड़कर बड़े भैया के चुनाव में कार्य करता था। उस समय नेताओं को आपत्ति होती थी कि, आप देवास-शाजापुर छोड़कर यहां कार्य क्यों करते हो, लेकिन बड़े भैया से मेरा क्या रिश्ता था यह मुझे भी नहीं पता था न ही उस ईश्वर को ज्ञात था कि हम दोनों का क्या रिश्ता था, कभी वह मेरे लिए एक बड़े भाई की भूमिका निभाते थे, कभी मेरे पत्नी के भाई की भूमिका निभाते थे, कभी मेरे पिता की भूमिका निभाते थे। आज ऐसा लग रहा है कि शायद मेरे पिता के निधन के बाद सबसे ज्यादा दुखी मैं बड़े भैया के चले जाने से हूं। मेरी पत्नी ने स्वर्गीय बड़े भैया को राखी बांधी थी। वह सिर्फ उन्हीं के परिवार के बड़े भैया नहीं थे, बल्कि भागीरथपुरा में अनेक गरीब वर्ग की बेटियों की शादी करवाने वाले बड़े भैया थे। मजदूरों की लड़ाई लड़ने वाले बड़े भैया थे। बाणगंगा की गरीब बस्ती में रहने वाले उस गरीब के भी बड़े भैया थे बारिश में जिसकी छत से पानी टपकता था। कोई भी व्यक्ति बड़े भैया के पास अपनी कोई भी समस्या लेकर चले जाएं वह निराश नहीं लौटता था। जब तक वह जीवित रहे उनका दरबार सभी के लिए हमेशा खुला रहता था और मैं दावे के साथ कह सकता हूं कि, इंदौर में जितनी भीड़ बड़े भैया के यहां लोग अपनी समस्या लेकर आते थे, उतने लोग इंदौर के किसी भी स्थापित नेता के यहां कभी नहीं आए होंगे। बड़े भैया सिर्फ नाम के बड़े भैया नहीं थे व्यवहार से भी बड़े भैया ही थे और कर्म से भी बड़े भैया थे। कोई भी व्यक्ति छोटी से छोटी समस्या लेकर उनके पास चला जाए उसके समाधान के लिए वह हमेशा तत्पर रहते थे। स्वर्गीय श्री प्यारेलाल खंडेलवाल जी के साथ उनका गहरा जुड़ाव था। पठान साहब और मैं शायद उनके दोस्त या भाई का ही नहीं वह कौन सा रिश्ता हमारे बीच बना था यह मैं आज भी तय नहीं कर पा रहा हूं।
आज कॉलेज में प्रबंधन की बड़ी-बड़ी डिग्री दी जाती है, लेकिन 1937 में जन्मे विष्णुप्रसाद शुक्ला का प्रबंधन ऐसा था कि, आज शुक्ला परिवार का जो वट वृक्ष है वर्मा परिवार का या पठान परिवार का जो वट वृक्ष है उसको देखकर आप अंदाजा लगा सकते हैं, कि बड़े भइया कितने कुशल प्रबंधक थे, कि चाहे संजय को विधायक बनाने की बात हो या राजेंद्र को विधायक बनाने की बात हो, दूसरी पीढ़ी तक को बड़े भैया सहज कर और अबेर कर गए हैं। जब इंदौर के मिल एरिये में कम्युनिस्ट, इंटक और कांग्रेस का बोलबाला हुआ करता था, बड़े भैया उस समय वहां से चुनाव लड़ते थे, जो पौधा बड़े भैया इंदौर के विधानसभा क्षेत्र क्रमांक दो में लगाकर गए थे, वह पौधा आज पुष्पित एवं पल्लवित होकर अपने विराट स्वरूप में खड़ा है। भारतीय जनता पार्टी का वर्चस्व चाहे इंदौर में हो सांवेर में हो या देपालपुर और महू में है, उसमें बड़े भैया के योगदान को कभी भुलाया नहीं जा सकता।
बड़े भैया का यूं जाना मेरे लिए वही क्षति है, जिसकी पूर्ति संभव नहीं है। साथ ही यह क्षति भारतीय जनता पार्टी के उन हजारों कार्यकर्ता की भी है, जो किसी भी समस्या के समाधान के लिए सबसे पहले बड़े भैया के पास जाते थे। बड़े भैया के पास शायद कोई घड़ी नहीं थी, वे रात के 2 बजे हो या दोपहर के 12 बजे हो कभी किसी की सहायता के लिए मना नहीं करते थे। समय देखे बिना ही तुरंत कार्यकर्ता की मदद को तत्पर रहते थे। एक समय जब इंदौर में कांग्रेस और कम्युनिस्टों का जलजला हुआ करता था, तब स्वर्गीय राजेंद्र धारकर, बड़े भैया जी और मैनें जनसंघ के कार्य को बढ़ाया है, उस समय चाहे स्वदेश प्रेस पर हमले की बात हो, चाहे कांग्रेस के गुंडों से निपटने की बात हो, सबसे पहले छाती अगर किसी की आती थी तो वह विष्णु प्रसाद शुक्ला जी की आती थी। उनका स्वास्थ्य कुछ समय से ख़राब जरूर चल रहा था, लेकिन यह आभास नहीं था कि, वह हमें इतनी जल्दी छोड़कर चले जाएंगे। मैं उनको श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए यही कहना चाहता हूं कि, बड़े भैया आप जहां भी हो अपने आशीर्वाद से मेरे परिवार को और मेरे को और उन हजारों गरीब मजदूरों को जिनके पास 2 जून की रोटी कमाने की भी नहीं है, जिसके घर में बारिश में पानी टपकता है, उसकी ताकत बनकर वहां भी खड़े रहना और जीवनभर अपना आशीर्वाद हम सभी पर बनाए रखना, श्रद्धेय श्री बड़े भैया जी के श्री चरणों में अश्रुपूरित श्रद्धांजलि अर्पित करता हूं।- फूलचंद वर्मा, पूर्व सांसद
Leave a Reply