देवास। गुरु पूर्णिमा इसलिए मनाई जाती है, कि हम कम से कम साल में एक बार उसको याद कर ले, लेकिन गुरु की पूर्णिमा तो निरंतर है। गुरु एक दिशा होती है। जिनके पास संसार की सारी समस्याओं का हल होता है। गुरु एक वास्तविक दिशा दर्शन है। जो आदमी की सारी समस्याओं का हल कर देता है। सबसे पहला गुरु है, वह अज्ञात है। वह दिखने में नहीं आता, समझने में नहीं आता है। वह रमैया हैं, राम है। उसे सुर गुरु कहते हैं। गुरु अंधकार के पार हैं, जो हमें प्रकाश की ओर ले जाता है।
यह विचार सद्गुरु मंगलनाम साहेब ने सदगुरु कबीर सर्वहारा प्रार्थना स्थलीय सेवा समिति मंगल मार्ग टेकरी द्वारा गुरु पूर्णिमा महोत्सव कार्यक्रम की तैयारी को लेकर आयोजित गुरु-शिष्य संवाद, वैचारिक गोष्ठी में व्यक्त किए। उन्होंने आगे कहा, कि माता-पिता के पहले जो गुरु है, वह सुरगुरु ही है। वह सबके पास सदा है और सदा रहेगा। लेकिन हम कपड़े, चमड़े, पद, पदार्थ में उलझे हुए हैं। इनको छोड़कर जब सत्य को समझोंगे तो वहां केवल सुरगुरु ही रहेगा। वहां पहुंचने पर कोई जाति-पाति का भेदभाव नहीं रहता। संसार के सारे भेदभाव मिट जाते हैं, क्योंकि वह देह से रहित है। वह तो विदेही पुरुष है। जो सबका दिशा दर्शन करने वाला है। सबका मालिक भी वही है। बाकि थोड़ी-थोड़ी दूर जाकर तो सबका पतन हो जाता है। जैसे कपड़े-चमड़े व्यवहार बदल जाता है, लेकिन सुरगुरु अखंड आपके साथ है।
संसार की असारता का दर्शन करने के लिए झाड़ से टूटा पत्ता भी गुरु का मार्गदर्शन, गुरु का संदेश दे रहा है कि संसार मिटने वाला है। इसके पीछे मत भागो। इसमें मत उलझो। यह तुम्हारे साथ रहने वाला नहीं है। तुम्हें तो सुर गुरु के साथ ही रहना है। जो अखंड अक्षय जिसका कभी नाश नहीं होता। यह जानकारी सेवक राजेंद्र चौहान ने दी।
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