“भूलन द मेज”: राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त फिल्म…

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मेरी एक रिश्तेदार महिला के कहने पर यूट्यूब पर Bhulan the Maze फिल्म देखी। मैं सोच रहा था, कि राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार से सम्मानित यह एक बोरिंग फिल्म होगी लेकिन फिल्म ने मुझे प्रारंभ से ही बांधे रखा।

छत्तीसगढ़ के बैकग्राउंड पर बनी इस फिल्म में भले ही नामी-गिरामी कलाकार न हों लेकिन फिल्म की कहानी तथा कलाकारों का बेहतरीन अभिनय अंत तक फिल्म के प्रति उत्सुकता बनाए रखता है।

फिल्म की कहानी छत्तीसगढ़ के एक गांव की है। गांव में एक व्यक्ति संदेहास्पद तरीके से मर जाता है। चूंकि जिस पर मारने की शंका ज्यादा बनती है वह दो बच्चों का पिता है। गांव वाले उसे बचाने के लिए स्वैच्छा से तैयार एक वृद्ध को न्यायालय से सजा दिलवा देते हैं। लेकिन ईमानदार जेलर की वजह से वह वृद्ध जेल से छूट जाता है और हाईकोर्ट दोबारा जांच का आदेश कर देता है।

जांच के पश्चात कैसे गांव वाले कानून की गिरफ्त में आते हैं और किस तरह वे कोर्ट का सामना करते हैं, यह सब बेहद रोचक ढंग से फिल्माया गया है।

फिल्म का एक शानदार पक्ष उसका मधुर संगीत भी है। छत्तीसगढ़ी गानों को सुनना अच्छा लगता है। कलाकारों में मास्टर जी के रूप में अशोक मिश्रा, भाक्ला के रूप में ओंकार दास मानिकपुर, वकील के रूप में राजेंद्र गुप्ता और मुकेश तिवारी तथा भाक्ला की पत्नी के रूप में छत्तीसगढ़ी कलाकार अनीमा पगारे का अभिनय बेमिसाल है। मनोज वर्मा का निर्देशन बेहद चुस्त है और पूरी फिल्म देखने में पलभर को भी बोरियत महसूस नहीं होती है।

भूलन द मेज जरूर देखें। आप फिल्म देखकर निराश नहीं होंगे।

जय हिंद-
अशोक बरोनिया,
वरिष्ठ साहित्यकार एवं समीक्षक

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