देवास। भक्ति करके मुक्ति पा लो क्योंकि यह अवसर बार-बार मिलने वाला नहीं है। 84 लाख योनियों में भटक कर ही मनुष्य योनि मिलती है। भक्ति हम मनुष्य योनि में ही कर सकते हैं। मनुष्य योनि मिली है तो थोड़ा समय निकालकर भगवान का स्मरण अवश्य करें।
यह विचार व्यासपीठ से पं. अजय शास्त्री ने महिला मंडल द्वारा भवानी सागर में श्रीमद् भागवत कथा के छठवें दिन गुरुवार को व्यक्त किए। उन्होंने कहा, कि जब भगवान श्रीकृष्ण मधुरा छोड़कर जा रहे थे, तब गोपियाें ने कहा कि हमें छोड़कर कहां जा रहे हो कन्हैया। माता यशोदा द्वार पर खड़े-खड़े रो रही है, रोते-रोते कहती है कन्हैया तू हमें छोड़कर कहां जा रहा है। कन्हैया ने कहा, मां जितनी लीलाएं करना थी वह सब कर ली है। अब मुझे गोविंद से कृष्ण बनना है। अभी तक मैं गोविंद था, गोपाल था। यशोदा ने कहा कि गोविंद तुम मेरे बेटे नहीं हो, इसलिए तुम मुझे छोड़कर जा रहे हो। कन्हैया ने कहा मां की ममतामयी छांव में जीवन का अमूल्य क्षण होता है। मां मैं आपका कर्ज नहीं चुका सकता, लेकिन अब मुझे जाना ही पड़ेगा।
पं. शास्त्री ने कहा, कि कथा में आकर बैठो तो अपने हृदय का ढक्कन खोलकर बैठना ताकि ज्ञान रूपी गंगा तुम्हारे हृदय में भर जाए। जो सच्चा भक्त होता है, उसे लाख मना कर दो कि कथा में मत जाना लेकिन जिसकी प्रीत ठाकुरजी से लगी है, वह जरूर आएंगे। जिसकी प्रीत नंदलाल से लगी हो वह टूटने वाली नहीं है। आयोजक महिला मंडल मुख्य यजमानों द्वारा व्यासपीठ की पूजा-अर्चना कर महाआरती की गई। सैकड़ोे धर्मप्रेमी ने कथा श्रवण कर धर्म लाभ लिया।
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