जिसने परमात्मा को जान लिया, उसे फिर संसार को जानने की जरूरत नहीं पड़ती- पं. अजय शास्त्री

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देवास। जब भगवान मस्तक पर हो तो संसार के बंधन छूट जाते हैं और जब माया सर पर हो तो संसार के बंधन में बंध जाते हैं। माया के बंधन में बंधा हुआ व्यक्ति काम, क्रोध, लोभ, मोह में बंध जाता है फिर उसे कभी सुख की प्राप्ति नहीं होती। माया से जो सुख मिलता है वह क्षणिक मात्र रहता है। माया के बंधन में बंधने से व्यक्ति की बुद्धि भ्रष्ट हो जाती है। फिर उसे माया के अलावा और कुछ दिखाई नहीं देता।

यह विचार व्यासपीठ से पं. अजय शास्त्री ने भवानी सागर में महिला मंडल द्वारा आयोजित श्रीमद् भागवत कथा के पांचवें दिन बुधवार को व्यक्त किए। उन्होंने कहा जब भगवान के बंधन से बंध जाते हैं, तो सुख-दुख के बंधनों से मुक्त हो जाते हैं। जो आत्मा के पति हैं उनके सामने झुको। परमात्मा ने तुम्हें बनाया है ,उनका अंश तुम्हारे ही अंदर है। तुम उस परमात्मा को जानो और जिसने परमात्मा को जान लिया उसको फिर संसार को जानने की जरूरत नहीं पड़ती।

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पं. शास्त्री ने आगे कहा कलियुग का मनुष्य अपना ध्यान माया में लगाए हुए हैं। अगर परमात्मा में ध्यान लगाते भी हो तो केवल उनका ध्यान इतनी देर रहता, जितनी देर कथा पंडाल में रहते हैं। सुख का संसार से तो दुख का परमात्मा से नाता है। जब परमात्मा आते हैं तो दुख देते हैं और जब माया आती है तो सुख देती है। आपको यदि परमात्मा की कृपा पाना है तो कष्ट आ रहे हैं, उन्हें सहन करों। अगर दुख भगवान ने दिया है, तो सुख भी भगवान ही देंगे। बस इतना सा ध्यान रखो, कि कोई हमारे साथ खड़ा रहे ना रहे, गोविंद तो हमारे साथ खड़ा है।

कथा के दौरान पं. शास्त्री ने नंदजी के अंगना में सज रही आज बधाई हो… भक्ति गीत की सुमधुर संगीतमय प्रस्तुति दी तो श्रद्धालु भाव-विभोर होकर झूमने लगे। मुख्य यजमानों, महिला मंडल द्वारा व्यासपीठ की पूजा-अर्चना कर महाआरती की गई। सैकड़ों धर्मप्रेमियों ने कथा श्रवण कर धर्म लाभ लिया।

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