सुरगुरु अखंड राजा व विश्व का मालिक है, जो कभी नष्ट नहीं होता- सद्गुरु मंगलनाम साहेब

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– महामंडलेश्वर मनोज बाबा ने की सद्गुरु मंगलनाम साहेब से भेंट

देवास। शरीर ही शरीर को मिटा रहा है। जीव तो विदैही पुरुष है, जो सुरगुरु श्वास रूप में सब में मौजूद है। एक का शरीर तुम मिटाओंगे तो वही श्वास दूसरे में प्रवेश कर जाती है। ऐसा कर तुम अपना जीवन भी उसको दे रहे हो। दूसरे का जिसका शरीर तुमने नष्ट किया वह तुम्हारे ही अंदर बैठकर श्वास लेगा। वह शरीर कभी मिटता नहीं। वह अमिट है चारों युगों से। तुम भाई-भाई को भी अपने स्वार्थ के लिए मिटा रहे हो। छायावादी लोग हो तुम एक-दूसरे की यात्रा समाप्त कर रहे हो। उनके शरीर रूपी वाहन को तोड़ रहे हो, लेकिन यात्रा तो शरीर ही शरीर की कर रहा है। जीव तो अजर अमर है, चैतन्य पुरुष है। चैतन्य पुरुष तक पहुंचना बहुत मुश्किल है। वहां तक तो वही पहुंच पाएगा जिसमें दया, प्रेम और विश्वास हो।

यह विचार सद्गुरु मंगल नाम साहेब ने सदगुरु कबीर सर्वहारा प्रार्थना स्थलीय सेवा समिति मंगल मार्ग टेकरी द्वारा आयोजित गुरु-शिष्य चर्चा, गुरुवाणी पाठ में व्यक्त किए। इस दौरान शिवनी बालाघाट के महामंडलेश्वर मनोज बाबा ने वन औषधियों के ज्ञाता एन चतुर्वेदी के साथ मंगलनाम साहेब से भेंट कर चर्चा की।

उन्होंने आगे कहा पूरी दुनिया देखना छोड़ दो केवल नाक के सामने तुम्हारी श्वास चल रही है। वही तुम्हारे साथ रहेगी। उसी ने तुम्हें सारे संसार को समझने के लिए भेजा है, लेकिन तुम उसको न देखकर दुनिया को देख रहे हो। दूसरों को समझने में लगे हो। सारे रिश्तों का रिश्ता मेरा सुरगुरु है, वह पूरे विश्व का मालिक है जो कभी बदलता नहीं, नष्ट नहीं होता, जो अखंड राजा है।

उन्होंने कहा किसी दिन हम मूर्ति बनाते हैं तो किसी दिन उस मूर्ति को हम तोड़ देते हैं। किसी दिन पैदा करते हैं तो किसी दिन बुलडोजर चढ़ा देते हैं। लोग पशुओं की बलि दे रहे हैं, शरीर की भूख मिटाने के लिए। दूसरे शरीर को मिटा रहे हैं, लेकिन जो मानव चैतन्यता में प्रवेश कर जाता है। वह मिटने और मिटाने से परे हो जाता है। आदमी दूसरों को मिटाने की भ्रमवश भूल कर रहा है। जबकि वह विदैही है। जो कभी मिटते नहीं है एक मिटा तो दूसरे में प्रवेश कर जाती है। वह अजर और अमर है। यह जानकारी सेवक राजेंद्र चौहान ने दी।

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