जब अंत:करण की शुद्धि होती है तब मिलते हैं राम
संत कमलकिशोर नागर ने श्रीमद भागवत कथा में दिए प्रेरणादायी संदेश
बेहरी (हीरालाल गोस्वामी)। कथाएं पाप को धीमा कर देती है। इतने अधिक लोग एक साथ तीन घंटे तक कथा सुनने के लिए बैठते हैं, तो कम से कम से पाप से बच जाते हैं। बाहर रहते तो कोई निंदा करता, कोई झगड़ा करता। अगर कथा सुनने से कोई पुण्यवान नहीं बना तो भी पाप तो नहीं हुआ। पाप ना होना भी तो पुण्य ही है। जहां भी कथा होती है, वह पाप को रोक देती है। कथा का असर थोड़े दिन अवश्य रहता है। अंत:करण की शुद्धि होती है तब राम मिलते हैं। पारखी लोग भगवान की खोज कर लेते हैं।
यह विचार मालवा के संत पं. कमलकिशोर नागर ने बेहरी-बागली मार्ग स्थित भोमियाजी मंदिर के समीप श्रीमद भागवत कथा में व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि जब किसी के घर हमेशा आते-जाते है तो संबंध बन जाता है। इसी प्रकार भगवान के यहां आतेजाते रहने से ब्रह्म संबंध बनता है। ब्रह्म संबंध बनाकर अपना भगवान से नाता भी बना सकते हैं। संतश्री ने कहा कि फिर वही तर्क आएगा कि क्यों तुमने भगवान को देखा है। जिसे देखा ही नहीं तो उसकी बात क्यों करते हो। हमारा कहना है कि आप किसी को रिश्ते में भाई, बहन बना लेते हो। जब कोई पूछता है कि यह तुम्हार सगा भाई या बहन है तो आप कहते हैं मैंने इसे भाई या बहन माना है। जो है नहीं उसे भी मान सकते हो तो ईश्वर को मानने में क्या परेशानी है।
संतश्री ने उदाहरण देते हुए कहा, कि माना शब्द पर दुनिया टिकी है। भारत का गणित टिका है। जो बच्चे गणित के हैं, उनसे पूछो एक घोड़े को 440 रुपए में बेचने से 12 प्रतिशत की हानि हुई तो घोड़े का क्रय मूल्य बताइएं। हर विद्यार्थी उसका क्रय मूल्य निकालता है। उसकी परीक्षा होती है, रिजल्ट आता है। नौकरी लगती है, लेकिन पूछा तो पता चला कि घोड़ा भी नहीं है, बेचा भी नहीं है, लिया-दिया भी नहीं है। संतश्री ने कहा भगवान कहां है यह प्रश्न करने वाले आओ मैदान में। तुम पढ़े हो.., अफसर बने हो, लेकिन तुमने भी तीन बिंदी लगा दी, ऊपर एक और नीचे दो जिसे चूंकि कहा, फिर माना कि चूंकि …। इसलिए घोड़ा नहीं है। बेचा भी नहीं, हानि भी नहीं हुई और जब घोड़ा ही नहीं है तो हानि कैसे होगी। फिर भी तुम मान लेते हो, आपका रूतबा है, नौकरी लग गई, एक झूठे घोड़े को पढ़कर के बैठे हो। कितनी मौज की जिंदगी है। संतश्री ने कहा कि घोड़ा नहीं है, उसे घोड़ा मान लिया। इसी प्रकार भगवान देखा नहीं है तो भी भगवान को मानने में क्या परेशानी। जिनकी बुद्धि विकसित हुई, उनकी बुद्धि ने कुछ नहीं किया केवल ईश्वर को नकारा है। इसे कहते हैं विनाश काले विपरीत बुद्धि।
संतश्री ने कहा, कि आपसे कोई सवाल करे तो ऐसे लोगों को आप ये उदाहरण दे सकते हो। कह सकते हो आपने बिना काम के प्रश्न बनाए और बिना काम के उत्तर दिए। तो फिर कथा को बिना काम की क्यों कहते हो। कथा भी उसी तरह कही जाती है और भक्त उसे सुनते हैं। एक भक्त भगवान को सुनते-सुनते, भजते हुए, उसके धाम तक पहुंच जाता है। अस्तित्व की कीमत है, अस्तित्व का ही महत्व है।
नाम का जाप पाप नाशक-
संतश्री ने कहा कि गाड़ी में हार्न इसलिए लगाया जाता है कि इसके बजते ही सामने वाला हट जाए। इसी प्रकार भगवान का एक नाम लेते ही पाप हट जाता है। जप, भजन, माला करने का महत्व भी इसलिए ही है। एक बार जप नहीं करना बार-बार करना है, क्योंकि एक पाप थोड़े ही किए हैं। बहुत पाप किए हैं तो बहुत जप करना पड़ेंगे। हाट का दिन होता है तो भीड़ ज्यादा होती है। ऐसे में गाड़ी चलाने वाला हॉर्न बजाते ही रहता है। इसी प्रकार निरंतर माला जपने का भाव ही यह है। पाप हाट के दिन जैसा है। इसमें से निकलना है। नाम जप पाप नाशक है। इससे शांति मिलती है। लाइन अभी संसार से जुड़ी हैं। जगत मिथ्या है और ब्रह्म सत्य है। वही साथ में जाएगा। कीमत शब्द की है। पार करेगा तो शब्द पार करेगा। शब्द में श्रद्धा रखों। शब्द ही उस परमात्मा तक सौंप देगा।
कथा श्रवण के लिए रविवार को हजारों की संख्या में श्रद्धालु पहुंचे। यहां मप्र के अलग-अलग जिलों से तो श्रद्धालु आए ही, साथ ही महाराष्ट्र, राजस्थान, गुजरात से भी श्रद्धालु आए। भीषण गर्मी के बावजूद श्रद्धालुओं का उत्साह कम नहीं हुआ। श्रद्धालुओं की संख्या अधिक होने से पंडाल का क्षेत्रफल बढ़ाया गया। आज कथा में विधायक मुरली भंवरा, आयोजक कमलादेवी भार्गव, चंद्रशरण भार्गव, अनुविभागीय अधिकारी सृष्टि भार्गव ने व्याससीठ का पूजन किया। भोपाल जेल सुप्रीटेंडेट सूरज शर्मा, बागली एसडीएम आनंद मालवीय परिवार सहित कथा श्रवण के लिए आए।
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