काम, क्रोध, मोह, माया के मन व शरीर में भक्ति प्रवेश नहीं हो सकती- पं. अजय शास्त्री

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देवास। जैसे झूठी थाली में भोजन नहीं होता, वैसे ही इस काम, क्रोध, मोह माया के शरीर में भक्ति प्रवेश नहीं कर सकती। इसे पवित्र करने के लिए कीर्तन करना पड़ेगा और कीर्तन में कहते हैं, कि भगवान की कथा गंगा है।

यह विचार श्री रंगनाथ राधाकृष्ण मंदिर प्राण-प्रतिष्ठा महोत्सव के अंतर्गत चाणक्यपुरी में श्रीमद् भागवत ज्ञान गंगा महोत्सव के शुभारंभ अवसर पर व्यासपीठ से पं. अजय शास्त्री ने व्यक्त किए। उन्होंने कहा, कि एक तो वह भागीरथ की गंगा जो हरिद्वार में बह रही है और दूसरी यह भागवत रूपी गंगा है जो चाणक्यपुरी रंगनाथ मंदिर में बह रही है। भागीरथी गंगा में स्नान करना है तो हरिद्वार जाना पड़ता है, लेकिन यदि भगवती गंगा में स्नान करना है तो मन में विचार करो। भगवान से ऐसी प्रार्थना करों कि हे! भगवान आपकी करुणामय कथा का श्रवण हमें मिल जाए और हम हमारे पापों से मुक्त हो जाएं। इस भगवती कथा में स्नान करने के लिए, मन रूपी बर्तन को साफ करने के लिए कथा का श्रवण अवश्य करें।

आयोजक मंडल की चंदा शर्मा ने बताया, कि कथा शुभारंभ पूर्व श्री रंगनाथ राधाकृष्ण मंदिर चाणक्यपुरी कथा स्थल से कलश यात्रा निकाली गई। चाणक्यपुरी श्रीराम मंदिर से होते हुए कलश यात्रा राजाराम नगर गणेश मंदिर पहुंची। जहां कलश में जल भरकर प्रमुख मार्गों से होते हुए बैंड-बाजे, बग्घी के साथ कथा स्थल पर आई। कलश यात्रा में सैकड़ों धर्मप्रेमी माता-बहनें सिर पर कलश धारण कर शामिल हुईं। जगह-जगह धर्मप्रेमियों ने पुष्प वर्षा कर कलश यात्रा का स्वागत किया। कथा में मुख्य यजमान श्री रंगनाथ हैं।

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