– मानव उत्थान सेवा समिति आश्रम में सतपाल महाराज की शिष्या ने दिया धर्म संदेश
देवास। होली का पर्व प्रेम और सद्भाव का पर्व है। भगवान के प्रति श्रद्धा व भजन, भक्ति से ही मनुष्य शांति को प्राप्त कर सकता है। जिस तरह भक्त प्रहलाद के जीवन में हिरण्यकश्यप ने अनेक योतनाएं दी, फिर भी प्रहलाद भगवान के प्रति भक्ति में अडिग रहे। इसी प्रकार जो भक्त भक्ति मार्ग में निश्चात्मक बुद्धि द्वारा सत्य के मार्ग पर चलता है तो उसके जीवन में कठिन से कठिन परिस्थितियां भी सुगम परिस्थितियों में बदल जाती है।
यह बात अखिल भारतीय सामाजिक आध्यात्मिक संस्था मानव उत्थान सेवा समिति की देवास शाखा द्वारा बालाजी नगर में स्थित समिति के आश्रम में होली पर्व के अवसर पर आयोजित सत्संग समारोह में सतपाल महाराज की शिष्या रेणुका बाईजी ने कही।
उन्होंने कहा होली में रंग खेलने की परंपरा के पीछे उद्देश्य यह है, कि व्यक्ति का जीवन विविध रंगों की सुंदरता से खिल उठे, उसके जीवन से निरसता, निराशा, कुंठा, क्रोध आदि मनोभावों का दमन हो और उसके जीवन में उत्साह, उमंग, साहस व शांति का रंग चढ़े। मनोवैज्ञानिक रूप से देखा जाए तो होली का पर्व मन की दमित भावनाओं को बाहर निकलने का एक अवसर है।
साध्वीजी ने आगे कहा, कि सामान्य जीवन में हम अपनी भावनाएं उन्मुक्त रूप से अभिव्यक्त नहीं करते और कभी-कभी अवसर की कमी के कारण भी इन्हें अभिव्यक्त नहीं कर पाते। अतः हमारी भावनाएं मन की अंदरूनी परतों में ही दबी रह जाती है और लंबे समय तक दबे रहने पर मनोरोगों का कारण बनती है। होली के अवसर पर लोग अपने मन की अपनी भावनाओं को मुक्त रूप से बाहर निकालते हैं, लोगों से मिलते समय, गुलाल लगाते समय, रंग उड़ेलते समय, नाचते-गाते समय, लोग हंसते-बोलते हैं, भांति-भांति से अपनी भावनाओं को अभिव्यक्त करते हैं।
इस मौके पर उपस्थित साध्वी प्रभावती जी ने ज्ञान, भक्ति, वैराग्य से ओतप्रोत मधुर होली गीत प्रस्तुत करते हुए कहा होली अधर्म पर धर्म की,असत्य पर सत्य की, दुष्ट पर भक्त की जीत है। होली पर्व शासक को धर्म पर चलने की प्रेरणा देता है तो जनता को भी प्रभु नाम जपते हुए भक्ति की शक्ति से प्रभु में विश्वास को दृढ़ करने की प्रेरणा है।
बड़ी संख्या में उपस्थित धर्म प्रेमियों को साध्वीजी ने समझाते हुए कहा होली शब्द का तो उच्चारण है, हो+ली अर्थात जो बात हो ली अब उसका चिंतन न किया जाए। बीते को बिसार दे आगे की सुधि ले, इसी भाव का वाचक है, हो+ली।
उन्होंने कहा, कि वास्तव में तो ज्ञान रंग अथवा सत्संग का रंग ही ऐसा रंग है, जिससे मनुष्य बीती को बिसार आगे के लिए अपने कर्मों को सुधार सकता है और हुई बातों को मन से निकाल कर सबसे अपने संबंध एवं परिचित व्यक्तियों से मन का नाता प्रेममय बना सकता है। होली महोत्सव की खुशियों के रंग-बिरंगे उल्लास में हमें पर्व के अध्यात्मिक संदेश को भी जनना व समझना होगा कि भक्त प्रहलाद ने प्रभु नाम जपकर अपने अत्याचारी, आनाचारी पिता हिरण्यकश्यप से अपना बचाव निर्भिक होकर किया और प्रभु ने नरसिंह रूप में प्रकट होकर उस अधर्मी-अत्याचारी का दमन किया।
समिति के अंगूरसिंह चौहान, गोपाल कढ़वाल, रामेश्वर कुमावत, अशोक शर्मा, बंडूराव, सुरेश चावण्ड, मदन लोदवाल, बाबूलाल अहिरवार, जगदीश माली आदि उपस्थित थे।
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