मां बच्चे की प्रथम पाठशाला व गुरु होती है- ब्रह्माकुमारी हेमलता दीदी

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देवास। प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय कालानी बाग सेंटर द्वारा संस्था की इंदौर जोन की क्षेत्रीय निर्देशिका ब्रह्माकुमारी हेमलता दीदी एवं जिला संचालिका प्रेमलता दीदी के सानिध्य में रविवार को महाशिवरात्रि पर्व एवं महिला दिवस हर्षोलास के साथ मनाया गया।

इसमें अपने-अपने क्षेत्र में दिए गए विशिष्ट योगदान के लिए मातृशक्ति का सम्मान भी किया गया। इसमें प्रमुख रूप से समाजसेविका सुंदर अग्रवाल, मंजू मामगेन, ममता ठाकुर, संगीता जोशी, सरिता जाधव, प्रेमलता चौहान, सुधा सोलंकी सहित अन्य मातृशक्ति का शाल श्रीफल से क्षेत्रीय निर्देशिका हेमलता दीदी ने सम्मान किया। इस दौरान कलाकारों द्वारा नाटक का मंचन भी किया गया। नाटक के द्वारा आत्मा से परमात्मा का साक्षात्कार करवाया एवं माता-पिता द्वारा बच्चों को अच्छे संस्कार देने की भी भावपूर्ण प्रस्तुति दी गई।

मुख्य अतिथि मां चामुंडा सेवा समिति के समाजसेवी रामेश्वर जलोदिया, प्रेमनाथ तिवारी, टीना गुप्ता, डॉ. मनीषा बापना, प्रहलाद अग्रवाल थे। शुभारंभ अतिथियों द्वारा शिव बाबा का ध्वजारोहण एवं दीप प्रज्वलित कर किया गया। बीके हेमलता दीदी ने अपने विचार प्रकट करते हुए कहा कि महिलाओं को आज संसारभर में सम्मान मिल रहा है लेकिन आज महिलाएं जितनी स्वतंत्र हुई है, उतनी स्वच्छंद भी हो रही हैं। पार्टियों, क्लबों में ज्यादा रुचि ले रही हैं। इससे अपने बच्चों की ठीक से परवरिश नहीं कर पाती। अपने नाम, मान, शान के लिए बाहर बैठ अपनी महिमा मंडित करती रहती हैं, लेकिन मां का जो मुख्य कर्तव्य होता है बच्चों को संस्कारवान बनाना। वह आज के दौर में नहीं कर रही है। माता ही प्रथम गुरु व प्रथम पाठशाला होती है। वह जो सिखाती है, बच्चा वही सिख जाता है। बच्चा तो कच्ची मिट्टी के समान होता है। कुम्हार कच्ची मिट्टी को कैसे अपने हाथों से सुंदर रूप दे देता है। वैसे ही एक मां अपने बच्चों को संस्कारवान बना सकती है। नर और नारी यह तो बाहरी रूप है, असल में हम शरीर रूपी वेश में चाहे स्त्री का हो या पुरुष का शरीर, हम सब चैतन्य आत्माएं है। ना हम स्त्री है ना हम पुरुष है। यह पुरुष और स्त्री का तो केवल हमने शरीर रूपी वस्त्र पहना है।

संसार के रंगमंच में हम रोल कर रहे हैं। कई बार रोल को रोल नहीं, रियल मान बैठते हैं। जब रोल को रियल मान लेते हैं, हम अपनी वास्तविकता को खो देते हैं। मैं क्या हूं, मेरा कर्तव्य क्या है और मुझ आत्मा का सच्चा स्वरूप क्या है। हम भूल जाते हैं। इसलिए उस आत्मा को जाने जो चैतन्य है। इस अवसर पर जिले के संस्था से जुड़े भाई-बहन, समाजसेवी उपस्थित थे।

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