प्रभु श्रीराम दया, मर्यादा और शीतलता के महासागर हैं- आचार्य अनिल शर्मा

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देवास। हम दुखी इसलिए है, कि दूसरा सुखी क्यों है। जितने हम अपने सुखों से सुखी नहीं है, उससे कहीं ज्यादा हम दूसरों के सुख से दुखी है। भाई-भाई को और पड़ोसी-पड़ोसी को भी सुखी नहीं देखना चाहते। संसार में मुसीबत का कारण ही यही है, कि कोई अपने सिवाय दूसरों को सुखी नहीं देखना चाहता। जिसे दूसरों के सुख में सुख और दूसरों के दुख में दुख दिखाई देने लग जाए, समझना चाहिए कि उससे बड़ा कोई सुखी नहीं है। ऐसे व्यक्ति पर परमात्मा की कृपा भी बनी रहती है।

यह विचार व्यासपीठ से आचार्य अनिल शर्मा आसेर वाले ने मक्सी रोड बजरंगबली नगर स्थित हनुमंतेश्वर महादेव मंदिर प्रांगण में श्रीराम कथा के दौरान व्यक्त किए। उन्होंने कहा, कि प्रभु श्रीराम दया, मर्यादा और शीतलता के महासागर हैं। सांसारिक लोगों को प्रभु श्रीराम ने मर्यादा का जो पाठ पढ़ाया है, वह अद्भत है। उन्होंने कहा, कि अयोध्या में राम राजा बनने वाले थे। तीनों लोकों में आनंद की जैसे बरसात हो रही थी, लेकिन इंद्र को बड़ा दुख हो रहा था। वे सोच रहे थे, कि अगर राम राजा बन गए तो रावण, सुबाहु, मारीच और खरदूषण को कौन मारेगा। धरती का भार कैसे उतरेगा। इंद्र ब्रह्माजी के पास गए और कहा, कि पितामाह रामजी ने तो राजा बनने के लिए हां कर दी है। ब्रह्माजी ने कहा इंद्र तुम क्या चाहते हो। इंद्र ने कहा हम चाहते हैं, कि रामजी महल को छोड़कर जंगल में चले जाए। ब्रह्माजी ने प्रश्न किया आप ही बताइए अब क्या करें। तब इंद्र ने कहा, कि सरस्वतीजी से प्रार्थना की जाए। मां सरस्वती ने भगवान श्रीराम से पूछा कहो राघव जंगल में जाना है, कि महल में रहना है। रामजी ने कहा मैय्या हमें तो जंगल में जाना है, जिसका नाम है मंथरा उसकी बुद्धि खराब कर दो। ठीक है, क्योंकि मंथरा बड़ी लोभी है और लोभ वाला बड़े सरलता से उलझ जाता है। कथा के दौरान धर्मप्रेमियों, मुख्य यजमानों ने व्यासपीठ की पूजा-अर्चना कर महाआरती की। बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं ने कथा श्रवण का लाभ लिया।

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