पुरुषोत्तम को अपना ध्येय बना लेना, इससे एक दिन पुरुषोत्तम में मिलकर एकाकार हो जाएंगे- आचार्य विश्वदेवानंद अवधूत

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देवास। आनंद मार्ग प्रचारक संघ जिला देवास के उपभुक्ति प्रधान हेमेंद्र निगम काकू ने बताया, कि आनंद नगर में आनंद मार्ग प्रचारक संघ के आयोजित विश्वस्तरीय धर्म महासम्मेलन में देश/विदेश के मार्गी भक्तों ने भाग लिया।

सम्मेलन में ग्लोबल सेक्रेट्री आचार्य अभिरामानंद अवधूत, आचार्य रामेन्द्रानंद अवधूत, आचार्य अनिर्वानंद अवधूत, आचार्य शांतव्रतानंद अवधूत एवं मीडिया प्रभारी सुनील आनंद उपस्थित रहे।

पुरोधा प्रमुख आचार्य विश्वदेवानंद अवधूत ने भक्तों को संबोधित करते हुए कहा, कि पुरुषोत्तम विश्व के प्राण केंद्र हैं। वे ओत योग एवं प्रोत योग के द्वारा विश्व के साथ जुड़े हैं। हर जीव-जंतु, पशु-पक्षी, लता लता गुल्म के साथ व्यक्तिगत रूप से जुड़े रहते हैं, इसे कहते हैं ओत योग। परम पुरुष सभी सत्ताओं के साथ समषटि गत भाव से जुड़े रहते हैं, उसे ही कहते हैं प्रोत योग। परम पुरुष के इस अंतरंग संबंध को भक्त लोग ही अनुभव करते हैं।

पुरोधा प्रमुख ने कहा, कि भक्त तीन प्रकार के होते हैं। प्रथम प्रकार के साधक कहते हैं, कि परम पुरुष सबके हैं इसलिए मेरे भी हैं। ऐसा मनोभाव रखने वाले भक्त अधम श्रेणी में गणय है। परम पुरुष मेरे भी हैं और अन्य सभी जीवों के भी हैं, ऐसे भक्त मध्यम श्रेणी के हैं।

अव्वल दर्जे के भक्त कहते हैं कि परम पुरुष मेरे हैं और सिर्फ मेरे हैं, वे मेरे परम संपत्ति है। आचार्यजी ने कहा कि भक्ति पाने के लिए नैतिक नियमों का पालन करना होगा। निर्मल मन से जब इष्ट का ध्यान किया जाता है तो भक्ति सहज उपलब्ध हो जाती है।

प्राणकेन्द्र के चारों तरफ विधुताणु घूम रहे हैं, दूसरा है- पार्थिव चक्र जिसके केन्द्र मे पृथ्वी है और चन्द्रमा उसके चारो तरफ घूम रहा है- तीसरा है सौरचक्र – जिसमें सूर्य प्राणकेन्द्र में है और सभी ग्रह उसके चारो ओर घूम रहे हैं और चौथा तथा सबसे बड़ा चक्र है ब्रह्मचक्र अर्थात जिसके प्राणकेन्द्र में हैं, पुरुषोत्म और सम्पूर्ण जगत व्यापार (जड-चेतन) सम्पूर्ण जीव समूह उस पुरुषोत्तम के चारो तरफ घूम रहें हैं, चक्कर लगा रहे हैं और मुझे उनसे मिलकर एकाकार हो जाना है, तब वे परमपुरुष से मिलकर अमृत के महासिन्धु में विलीन हो जाते हैं। इसके लिए उनकी कृपा की आवश्यकता होती है। ऐसे लोग साधक होते हैं।


उन्होंने कहा, कि दूसरे प्रकार के वे साधारण लोग हैं जो कहते हैं कि मैं पाप भी नहीं करता हूं, साधना भजन भी करता हूं, ऐसे लोग विद्या और अविद्या के सामंजस्य के कारण अनन्तकाल तक घूमते रहेंगे, उनका घुमना कभी बंद नहीं होगा। तीसरे प्रकार के वे मनुष्य है जिन्हे पापाचारी कह सकते हैं, वे अविद्या शक्ति को बढावा देंगे- अत केन्द्र से दूर हट जाएंगे। ब्रह्मचक्र में दो प्रकार की शक्ति काम करती हैं- विद्यामाया या केन्द्रानुगा शक्ति और अविद्यामाया या केन्द्रातिगा शक्ति। जब तक जीव के मन में यह बोध रहेगा कि मैं और मेरे भेजने वाले, मैं और मेरे इष्ट दो पृथक सत्तायें है तब तक उनका घूमना बन्द नहीं होगा। हर अवस्था में हर भावना में हर कर्म में ब्रह्म को देखते रहने से अर्थात ब्रह्म सद्भाव से ही साधक का घूमना बंद हो जाएगा। वह देश काल पात्र के चक्कर से मुक्त हो जाएगा। परम पुरुष को अपना ध्येय बना लेना। इससे मनुष्य एक दिन परम पुरुष में मिलकर एकाकार हो जाएगा। उक्त जानकारी आनंद मार्ग प्रचारक संघ जिला देवास के भुक्तिप्रधान दीपसिंह तंवर ने दी।

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