पुरुष लेते हैं मजदूरी का ठेका, महिलाएं करती हैं खेतों में सिंचाई

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– समय के साथ खेती के कार्य में भी महिलाओं का बोलबाला
बेहरी। पुरुष लेते हैं मजदूरी का ठेका बदले में महिलाएं बन रही मदर इंडिया। यह कहानी फिल्मी नहीं, हकीकत है ।महिलाएं हर फील्ड में अपना वर्चस्व स्थापित कर रही है और इससे खेती भी अछूती नहीं है। यहां ठेका पद्धति से सिंचाई भी होती है। ये ठेका पुरुष लेते हैं, लेकिन सिंचाई का कार्य महिलाएं संभालती है।

उल्लेखनीय है, कि कृषि में मशीनरी उपकरण के चलते अधिकतर कार्य मशीन से हो रहे हैं, लेकिन सिंचाई ऐसा कार्य है, जिसे अभी भी व्यक्तिगत रूप से करना पड़ता है। संपन्न किसान अपने खेत पर सिंचाई करवाने के बदले निश्चित मजदूरी देते हैं। विशेषकर एक हेक्टेयर से अधिक रकबे वाले खेत मालिक सिंचाई मजदूरों से ही करवाते हैं। जरूरतमंद मजदूर परिवार प्रति बीघा एक क्विंटल अनाज के बदले सिंचाई का अनुबंध कर लेते हैं। इस अनुबंध में किसान द्वारा बताई गई 5 से 7 सिंचाई फसल में करना अनिवार्य रहता है।

ऐसी स्थिति में पुरुष मजदूर किसानों से सिंचाई करने का ठेका ले लेते हैं और घर-परिवार की महिलाओं के सुपुर्द यह काम छोड़ जाते हैं। ऐसे में विद्युत वितरण समय परिवर्तन होने से कई बार रात्रि में भी अनुबंध के अनुसार खेतों में सिंचाई करना जरूरी रहता है। क्षेत्र की अधिकतर महिलाएं दिन के समय तो अच्छी तरह से सिंचाई कार्य कर लेती है, लेकिन रात्रि में उन्हें बहुत परेशानी आती है। विद्युत का समय बार-बार परिवर्तित होता है।

वर्तमान में दोपहर 2 से शाम 7 बजे का समय चल रहा है। ऐसे में शाम 7 बजे तक महिलाएं सिंचाई करती है और घर जाकर घर परिवार भी संभालती है। आज भी ऐसे कई मजदूर परिवार है, जिन्हें शासन की योजनाओं का समुचित लाभ नहीं मिल पाया और वह इस प्रकार की अनुबंध मजदूरी मजबूरी में करने को विवश है।

नाम ना बताने की शर्त पर सिंचाई करने वाली महिला ने बताया, कि उसका बीपीएल कूपन भी नहीं बना और ना ही शासन की फ्री अनाज वाली योजना का लाभ मिल रहा है। सिंचाई अनुबंध से सात आठ क्विंटल गेहूं मिलेंगे, जिससे वह परिवार का पालन-पोषण करेगी। सोचने वाली बात यह है, कि क्षेत्र में इस प्रकार की अनुबंध मजदूरी बड़ी संख्या में दिखाई देती है। इसमें अनाज के बदले काम करना अभी भी बदस्तूर जारी है।

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