देवास। सत्यलोक का प्रकाश तो सिर्फ अनुभव की आंखों से ही दिखाई देता है। अगर आंखों से दिखाई देता तो हर कोई देख लेता। सत्यलोक प्रेम का प्रकाश है और प्रेम का प्रकाश सूरज-चांद के प्रकाश जैसा थोड़ी ही है। उसमें तो सब समाए हुए हैं। प्रेम के प्रकाश में सारे संसार की स्थिति, उत्पत्ति और प्रलय तीनों समाए हैं। पता ही नहीं लगता कि कब उसका प्रेम के प्रकाश में जीवन बीत गया। करोड़ों-अरबों वर्ष बीत गए। 16 सूर्य के समान हंस का सत्यलोक का प्रकाश है, जो वाणी से भी नहीं कहा जा सकता इतना तेज प्रकाश है। अमरलोक अमर है काया, अमर पुरुष जहां आप रहाया। शरीर को जन्म देने वाला जो अंकुरण है, वह अजर-अमर है, उसका कभी प्रलय नहीं होता। अजर नाम श्वास है, सुरगुरु है और वह कभी बच्चा बूढ़ा या जवान नहीं होता, क्योंकि उसके ऊपर कोई छाया आवरण नहीं है। वह महाप्रकाश है, आत्मलोक और सतलोक का प्रकाश है।
यह विचार सद्गुरु मंगल नाम साहब ने सद्गुरु कबीर सर्वहारा प्रार्थना स्थली सेवा समिति मंगल मार्ग टेकरी द्वारा आयोजित गुरु-शिष्य संवाद गुरुवाणी पाठ में व्यक्त किए। इस दौरान साध संगत द्वारा सद्गुरु मंगल नाम साहेब का शाल, श्रीफल भेंटकर पुष्पमाला से सम्मान भी किया गया। उन्होंने आगे कहा, कि वैराग्य, त्याग और विज्ञान में कोई झंझट यदि करता है अपने-अपने अनुरूप तो उसका आखिरी निर्णय विज्ञान ही करता है कि सत्य क्या है, क्योंकि हम अपनी-अपनी भाषा में किसी को कोई भी नाम दे दें, लेकिन वैराग्य, त्याग और विज्ञान से संसार की सारी झंझट समाप्त हो जाती है। जैसे शब्द भीतरे सभी समाना भूत, भविष्य और वर्तमाना। शब्द में आनंतकाल समाया हुआ है। अनंत काल का अर्थ इतना ही है कि हमने जान लिया और संतोष है। हम जब तक नहीं जान लेंगे संतोष नहीं होगा। जैसे अंधा आदमी टटोलकर ही बताता है, उसको दिखाई नहीं देता। जिसको दिखाई देता है वही सत्य बता सकता है। कोई कह रह चांद ऐसा है कोई कह रहा है सूरज ऐसा होगा। इसका निर्णय तो सिर्फ विज्ञान ही कर सकता है।
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