बागली (हीरालाल गोस्वामी)। संपूर्ण ब्रह्मांड को धारण करने वाली शास्वत शक्ति, मानव-मानव के जीवन को धारण करने वाली सूक्ष्म शक्ति ही धर्म है, पर मनुष्य की कूप-मंडूकता के अज्ञान ने सांसारिक चीजों की तरह ही धर्म पर भी मनमाने लेबल लगाकर समाज में नासमझी की दीवारें खड़ी कर लीं, जिनके कारण आज मनुष्य दानव बन रहा है और आपसी नफरत, लोभ, हिंसा, प्रदूषण व आतंक में जलकर समाज को भी जला रहा है। आज शिक्षा प्रणाली में छत्रपति शिवाजी की वीरता, कार्य कुशलता व चिंतन को समझाने की जरूरत है, जिनके जीवन निर्माण में उनकी वीर माता जीजाबाई एवं उनके गुरु समर्थ रामदास का मार्गदर्शन व आशीर्वाद था।
उक्त आध्यात्मिक सद्भावना संदेश ग्राम अंबापानी में समाजसेवी विराम सिंह, रायसिंह, भावसिंह कुमारिया की स्व. माता नर्मदा बाई की स्मृति में आयोजित रात्रिकालीन सत्संग समारोह में सतपाल महाराज की शिष्या प्रभावती बाई ने देते हुए कहा गुरु दरबार में सेवा मन लगाकर करने से, चिंतन दर्शन व सत्संग के परम लाभ के बीच जो सूक्ष्म आध्यात्मिक प्रक्रिया चलती है वह मन की अकड़, कठोरता व राग द्वेष की महामारी को धीरे-धीरे क्षीण करती चली जाती है। मन हल्का-फुल्का, प्रफुल्लित और अंतर आत्मा की तरंगों से आनंदित रहने लगता है।वास्तव में मानव बनाने का कारखाना तो गुरु दरबार ही होता है। समय के सतगुरु अपनी असीम कृपा से, आध्यात्मिक चेतना से मानवता के आवरण को शुद्धता, निर्मलता एवं पवित्रता प्रदान कर पृथ्वी के पर्यावरण को बचाने की महान प्रेरणा प्रदान करते हैं। जो संसार के सभी लोगों के मन को बदलकर उनका कल्याण करने वाली है।
आसपास क्षेत्र से बड़ी संख्या में उपस्थित धर्मप्रेमियों को अपनी ओजस्वी वाणी में संतश्री ने कहा ज्ञान वही सार्थक है, जो जीव का कल्याण करें और जिससे मुक्ति का मार्ग प्रशस्त हो। ऐसा ज्ञान निजी कल्याण के साथ-साथ जल कल्याण के लिए भी प्रभावित होता है। यह मानव जीवन उस सर्वव्यापी, सर्वशक्तिमान परमसत्ता को जानने का सर्वोत्तम साधन व अवसर है, क्योंकि मनुष्य शरीर को ही कर्मयोनी माना है संतों ने। तो आओ उस अध्यात्म ज्ञान की शक्ति को आत्मसात कर इस मानव जीवन को सार्थक करें।
इस मौके पर उपस्थित साध्वी शारदा बाई जी ने कहा इंसान इस दुनिया में जीवन का एक लक्ष्य लेकर आया है, उस लक्ष्य की प्राप्ति हेतु सही मार्ग पर चलते रहना ही उसका कर्तव्य है। यदि मार्ग में अंधेरा है तो हमें प्रकाश का स्त्रोत ढूंढना पड़ता है। इस प्रकाश के स्रोत परमपिता परमेश्वर अथवा गुरु महाराज होते हैं, जिनके ज्ञान प्रकाश के कारण ही हम उस मार्ग पर अग्रसर हो सकते हैं। उन्होंने कहा सत्य मार्ग का अनुसरण कर संघर्ष करने वाले महावीर होते हैं। वे ईश्वर से हर पल इच्छा प्रकट नहीं करते रहते अपितु कर्म कर उसे प्राप्त करते हैं। एक तैराक नदी नदी में तैरते के समय हाथ-पैर से न चलाए तो वह उस पार नहीं पहुंच सकता, वह डूब जाएगा। ठीक इसी भांति जब हम निश्चय करें कि हमें चलना है कर्तव्य पथ पर तो हम कर्मवीर बनकर निश्चयात्मक बुद्धि को मस्तिष्क में धारण कर चलें। इसे कर्मवीरता कहते हैं। जो धर्मवीर है तथा कर्मवीर भी है, वही पूर्ण है। संत श्री ने कहा प्रभु का ध्यान करने के लिए सत्संग बड़ा महत्वपूर्ण है। यह मानव मन को नियंत्रित करने का प्रथम उपाय है। जहां हरि चर्चा से मानव अपने आलस्य प्रमाद को भूलाता है, वहीं सत्संग से उसे अपूर्व शांति व आनंद भी मिलता है। आत्मा का ज्ञान प्राप्त करके मानव का तीसरा नेत्र खुलता है और वह मुक्ति पथ पर अग्रसर होने की क्षमता भी प्राप्त करने लगता है। ऐसा मनुष्य ही मानव कल्याण का अधिकारी है।
समाजसेवी कासम अली ने आध्यात्मिक सद्भावना, एकता भाईचारे व वृक्षारोपण को अपने जीवन का एक महत्वपूर्ण कर्तव्य मानने का आह्वान किया।आसपास क्षेत्र से आए हुए भजन गायक कलाकारों ने देर रात तक ज्ञान, भक्ति, वैराग्य, गुरु महिमा से ओतप्रोत मधुर भजनों की प्रस्तुति दी। कार्यक्रम का संचालन मानव उत्थान सेवा समिति के लक्ष्मणसिंह परिहार ने किया।
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