बेहरी (हीरालाल गोस्वामी)। उज्जवला योजना का जोरशोर से प्रचार-प्रसार किया गया था। योजना को गरीब महिलाओं के लिए महत्वपूर्ण बताया गया था, लेकिन सिलेंडर के भाव इतने अधिक हो गए कि मजबूरी में उज्जवला योजना के तहत मिले गैस सिलेंडर और चूल्हे को भंगार में रखकर कई घरों में फिर लकड़ी का उपयोग होने लगा है।
पूर्व सरपंच भगवानसिंह कासलीवाल, प्रताप बछानिया, सरवन राठौर, मोहन राठौर, पोपसिंह पटेल, भंवर राठौर आदि ने बताया कि आदिवासी परिवार के सदस्य मजदूरी के लिए भटकते हैं। कई बार मजदूरी भी नहीं मिलती, फिर इतना महंगा सिलेंडर कैसे खरीद सकते हैं। उन्होंने बताया कि सस्ता अनाज देने की योजना के चलते अनाज तो मिल रहा, लेकिन उसे पकाने के लिए ईंधन की पुरानी परंपरा फिर से शुरू हो गई है। पढ़ाई के समय में परिवार के छोटे बच्चे लकड़ी लेने जंगल सुबह से निकल जाते हैं। ऐसे में उज्जवला योजना के तहत मिली टंकी और चूल्हा व्यर्थ हो गया है। इन लोगों का कहना है कि 5 किलो अनाज की बजाए 2 किलो कर दिया जाए, लेकिन टंकी गरीब परिवारों को 300 रुपए में उपलब्ध कराई जाए, ताकि बारिश के दिनों में जंगल में खतरा उठाकर लकड़ी लेने नहीं जाना पड़े। वैसे भी बगैर ईंधन के अनाज किस काम का उसे पकाने के लिए ईंधन जरूरी है।
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