अनाज के बदले फल-सब्जी, मसाले, प्लास्टिक के फर्नीचर!

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  • वस्तु विनिमय की प्राचीन परंपरा गांव में आज भी जारी

बेहरी ( हीरालाल गोस्वामी) जब तराजू-बाट नहीं थे और आमतौर पर किसी वस्तु के भाव मुद्राओं में निर्धारित नहीं हुआ करते थे, उस समय वस्तु का लेनदेन वस्तुओं के अदान-प्रदान से ही हुआ करता था। ग्रामीण क्षेत्र में आज भी वस्तु विनिमय की यह प्रक्रिया चली आ रही है। न तो खरीददार को काेई मलाल रहता है और न ही बेचने वाले को। दोनों ही स्वेच्छा से वस्तु विनिमय कर संतुष्ट रहते हैं, क्योंकि दोनों को ही अपनी जरूरत का सामान मिल जाता है।

कुछ इसी प्रकार से प्राचीन परंपरा का निर्वाह क्षेत्र में आज भी हो रहा है। वस्तु विनिमय के तहत फल-सब्जी या अन्य वस्तुओं के विक्रेता नगद रुपए नहीं होेने पर भी अनाज के बदले सामान दे रहे हैं। बदलते दौर के बीच क्षेत्र के 20 से अधिक गांवों में इस प्रकार के वस्तु विनियम से ही व्यापार चल रहा है। मसाला व्यापारी जीरा, मिर्च, धनिया आदि के साथ विभिन्न प्रकार के फल व सब्जियों का विक्रय भी करते हैं। ग्रामीणों से अनाज लेकर ये वस्तु दे देते हैं। प्लास्टिक के टब, कुर्सी, टेबल बेचने वाले गांव की गलियों में दिनभर घूमते हैं। ग्रामीण अनाज देकर ये वस्तु ले लेते हैं। ग्रामीणों का कहना है कि हम नफा-नुकसान नहीं जानते, हमें तो हमारी पसंद की वस्तु अनाज देकर मिल रही है। मजदूर वर्ग के पास नगद राशि नहीं होती, ऐसे में अनाज के बदले ये वस्तुओं का क्रय कर घर में सजावट की वस्तुओं की बसावट वे आसानी से कर रहे हैं।

वस्तु विनियम प्राचीन परंपरा-

गांव के केदार पाटीदार ने बताया, कि प्राचीन काल में हमारे यहां के मसाले, इत्र, कपास आदि की मांग रोम देश में अधिक थी। इन वस्तुओं का भुगतान रोमन व्यापारियों द्वारा सोने और चांदी में किया जाता था। भारतीय वस्तुएं अपनी मूल कीमत से 100 गुना अधिक में भी बिकती थी। इस प्रकार से हमारे यहां वस्तु विनिमय तो प्राचीन परंपरा है। गांव में कुछ विक्रेता अभी भी वस्तुओं का अदान-प्रदान कर व्यापार कर रहे हैं, यह क्रेता-विक्रेता दोनों के लिए सुविधाजनक है।

बाजार भाव का रखते हैं ध्यान-

विक्रेताओं का कहना है, कि तात्कालिक रूप से अनाज का जो भाव बाजार में चलता है, उस भाव के हिसाब से उसके बदले अनाज लेकर भी अपना सामान बेचते हैं। चापड़ा से आए मोहनभाई ने बताया, कि वह हमेशा जीरा लेकर आते हैं और इसके बदले गेहूं या अन्य अनाज समय अनुसार भाव के हिसाब से बदलकर जीरा देते हैं। अन्य विक्रेता बालाराम बागवान व पिंटू बागवान ने बताया, कि हम सब्जी बेचते हैं, विशेषकर ग्रामीणों को अनाज के बदले में सब्जी व फल खिलाते हैं, जिससे अच्छी बिक्री भी हो जाती है और अनाज भी एकत्रित हो जाता है। इन दिनों सभी साइकिल वाले एवं प्रतिदिन छोटा धंधा करने वाले विक्रेता अनाज के बदले अपनी सामग्री बेचकर खुश नजर आ रहे हैं।

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