– प्रकृति ने ओढ़ ली हरियाली की चादर
बेहरी। वर्तमान में बारिश अपने पहले दौर में पहुंच गई है और तीन चौथाई बारिश का मौसम और बचा है। चारों तरफ प्रकृति की लीला आसानी से देखी जा सकती है। हरियाली की चादर ओढ़े प्रकृति वर्षा ऋतु में कई प्रकार की औषधियों को अपनी गोद से अंकुरित करके हमें प्रदान करेगी। विशेषकर विंध्याचल एवं सतपुड़ा पर्वत श्रेणी में यह औषधीय पौधे बड़ी मात्रा में निकलेंगे। आयुर्वेद के अनुसार इन पौधों की उम्र वर्षा ऋतु काल की ही रहती है। जानकार आयुर्वेदिक ज्ञाता इन्हें पहचान कर रख लेते हैं और समय-समय पर उपयोग कर कठिन से कठिन मर्ज का इलाज कर देते हैं। वर्तमान में चिकित्सा पद्धति कितने भी उच्चतम स्तर पर पहुंच जाएं लेकिन आयुर्वेद के मुकाबले पीछे है। आज भी वन संपदा पर आधारित जनजातियां कभी भी गंभीर बीमारी से ग्रसित नहीं होती। स्वस्थ तन-मन के साथ लंबी उम्र तक जीवन यापन करती है। इस प्रकृति में जो जड़ी-बूटी बाहर आती है, उन पर अभी भी रिसर्च की जरूरत है। बागली के समीप इंदौर व उदयनगर की सीमा अंतर्गत कांगरिया पर्वत श्रृंखला है। इसकी तलहटी में गिरगी नदी बहती है। यहां के संत भगवान दास महाराज बताते हैं, कि कैंसर, शुगर, ब्लड प्रेशर सहित कई त्वचा रोगों के लिए यहां पर भरपूर मात्रा में औषधि है। कई बार जहरीले जंतु के काटने के बाद इन औषधियों का उपयोग कर लेते हैं तो जीवनदान मिल जाता है। हरियाली अमावस्या की सनातनी परंपरा इस बात का प्रतीक है, कि अब उन औषधियों का आगमन शुरू हो जाएगा जो, दीपावली की अमावस्या तक सजग और सचेत रहती है, बस इसकी जानकारी होना चाहिए। प्राचीन समय में वर्षाकाल में आयुर्वेद से जुड़े चिकित्सक वनों में भटकते थे और औषधियों को साधना करके घर लाते थे, फिर दवाई बनाकर असाध्य रोगों का इलाज करते थे। वर्षाकाल में वनस्पति पर आधारित जानवरों को भी भरपूर भोजन मिलता है, उसी प्रकार नदियों-झरनों और कुओं में भरपूर जल रहता है। सनातन पर्व हरियाली अमावस्या इसी बात का प्रतीक है, कि प्रकृति पूरे वैभव पर है। इससे छेड़छाड़ नहीं की जाएं।
लेखक- हीरालाल गोस्वामी
वरिष्ठ पत्रकार हैं। वर्षों से प्रतिष्ठित समाचार पत्रों के साथ न्यूज वेबसाइट पर समाचारों का लेखन करते आ रहे हैं। वर्तमान में बागली प्रेस क्लब का दायित्व संभाल रहे हैं।
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