मंदिरों में दर्शन-पूजन के साथ गुड़-धानी बांटकर निभाई परंपरा,
बेहरी (हीरालाल गोस्वामी)। सावन माह की हरियाली अमावस्या पर दान-पुण्य के साथ मां नर्मदा के पवित्र जल में श्रद्धालुओं ने स्नान किया। धाराजी घाट पर स्नान के लिए बड़ी संख्या में श्रद्धालु पहुंचे। बारिश का मौसम होने से नर्मदा के जलस्तर में काफी बढ़ोतरी देखी जा रही है। ऐहतियात के तौर पर श्रद्धालुओं ने किनारे पर ही स्नान की परंपरा निभाई। स्नान के बाद घाट के आसपास बने मंदिरों में दर्शन-पूजन के साथ दान किया।
हरियाली अमावस्या पर सुबह से ही मंदिरों में भक्तों का तांता लगा रहा। सावन सोमवार होने से शिवालयों में विशेष पूजन-अर्चन, अभिषेक हुए। भक्तों ने भांग, धतुरा, आंकड़ा, बिेल्व पत्र अर्पित कर शिवजी को मनाया। जलाभिषेक व दुग्धाभिषेक भी किया। मंदिरों में महिलाओं ने भजन-कीर्तन किया। बेहरी में खेड़ापति हनुमान मंदिर जाकर पर्व मनाया गया। यहां पर सभी ने हनुमानजी के दर्शन किए।
आसपास के ग्रामीण क्षेत्र रामपुरा, बड़पुरा, पजरिया, खेड़ा, गवाड़ी, सिवन्या, अंबापानी आदि आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र में आदिवासी परिवारों ने धूप-ध्यान के साथ पूजन किया। सामाजिक रूप से धानी मुक्का की परंपरा निभाई। इस दौरान ज्वार, मक्का की धानी सेंककर पूजा की गई। परंपरा अनुरूप एक-दूसरे को मुक्का मारकर गुड़-धानी का वितरण किया गया। बुजुर्ग मेहताब बछानिया ने बताया प्रत्येक घर में ज्वार एवं मक्का की धानी के साथ सीके हुए चने की पूजा करने के बाद बच्चों में बांटा गया। पहले जब चिप्स, कुरकुरे आदि नहीं थे, तब ज्वार, मक्का, चने आदि ही बच्चों के लिए ड्राइफूड थे।मान्यता के अनुसार ऐसा करने से परिवार में खुशहाली बनी रहती है। देर शाम तक सार्वजनिक स्थलों पर बच्चे धानी मुक्का खेलते नजर आए।
शरीर में रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है-
वरिष्ठ किसान नाथूसिंह सेठ, पं. प्रभु एवं प्रहलाद महाराज ने बताया कि हमारे समय में मुक्का इतनी जोर से मारा जाता था, कि दर्द होता था। जैसे ही गुस्सा आता वैसे चने-धानी देने से गुस्सा खत्म हो जाता था। नई पीढ़ी सिर्फ मुंह से मजाक करती नजर आती है, जिसमें भी कई बार गलत शब्दों का प्रयोग होने से विवाद हो जाता है। पहले इसी प्रकार के खेल से शारीरिक व्यायाम और मजबूती बनी रहती थी। केदार पाटीदार व बालाराम दांगी ने बताया मौसम में परिवर्तन होने के साथ गर्मी से राहत मिलती है। ऐसे में सीके हुए गेहूं एवं गुड़ खाने से शरीर में रोग प्रतिरोधक क्षमता आती है, इसलिए यह भी खाया जाता था।
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