साधना व ध्यान से ही मन को शुद्ध कर पहचान सकते हैं आंतरिक दिव्यता को

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– एकमात्र परम पुरुष ही ध्रुव है, जबकि अन्य सभी वस्तुएं अध्रुव होती हैं, जो परिवर्तनशील है
– आनंद मार्ग प्रचारक संघ के विश्वस्तरीय त्रिदिवसीय धर्म महासम्मेलन का हुआ समापन
देवास। ज्ञान का मार्ग साधना और ध्यान के माध्यम से चलाया जा सकता है। साधना और ध्यान से हम अपने मन को शुद्ध करके अंतर्मुखी बनाते हैं और अपनी आंतरिक दिव्यता को पहचानते हैं। ध्रुवता का अनुभव करने के लिए हमें नियमित रूप से साधना करनी चाहिए और मन को संयमित रखना चाहिए। इस प्रक्रिया में हम परम सत्ता को प्राप्त कर सकते हैं और ध्रुवता की अनुभूति कर सकते हैं।
यह विचार आनंद नगर पुरुलिया में आनंद मार्ग प्रचारक संघ के विश्वस्तरीय त्रिदिवसीय धर्म महासम्मेलन के तीसरे व अंतिम दिन साधकों को संबोधित करते हुए पुरोधा प्रमुख विश्वदेवानंद अवधूत ने ध्रुव और अध्रुव पर प्रवचन देते हुए व्यक्त किए। आनंद मार्ग प्रचारक संघ देवास के भुक्ति प्रधान दीपसिंह तंवर एवं डीएस आचार्य शांतव्रतानंद अवधूत ने बताया कि
आचार्य हृदयेश ब्रह्मचारी ने बताया, कि यह प्रवचन आनंद मार्ग के संस्थापक बाबा आनंदमूर्तिजी के शिक्षाओं पर है, जो मनुष्य के आंतरिक विकास और परमपुरुष की प्राप्ति को प्रमुखता देते हैं। ध्रुव और अध्रुव के अंतर को समझने के माध्यम से हम जागृत हो सकते हैं कि हमारा सच्चा अस्तित्व परम सत्ता में स्थित है, जो सदैव अचल और अविनाशी है। यदि हम इस आंतरिक सत्ता को पहचानते हैं और उसमें स्थिरता स्थापित करते हैं, तो हम जीवन के सभी परिवर्तनशील पहलुओं के परे स्थायित्व का अनुभव कर सकते हैं।
ध्रुव और अध्रुव का उदाहरण देते हुए प्रवचन में बताया गया कि एकमात्र परम पुरुष ही ध्रुव होता है, जबकि अन्य सभी वस्तुएं अध्रुव होती हैं। ये परिवर्तनशील होती हैं और देश, काल के अंतर्गत बदलती रहती है। हमें जब कोई वस्तु आकर्षित करती है, तो हम उसे प्राप्त करने पर खुश होते हैं, लेकिन जब हम उसे खो देते हैं, तो हम दुखी होते हैं।


आनंदमूर्तिजी कहते हैं, कि परम सत्ता को हम प्राप्त नहीं करते और न ही खोते हैं, वह हमारे साथ हमेशा रहती है। वहीं ध्रुव होते हैं। अब ध्रुव को पाने का उपाय क्या है? ध्यान के माध्यम से हम अपने मन को एकाग्र करके अंतर्दृष्टि को जागृत करते हैं और अपनी आंतरिक दिव्यता को पहचानते हैं। इस प्रक्रिया में, हम शांति, सुख और आनंद की अनुभूति करते हैं जो हमें सामरिक और स्थायी खुशी प्रदान करती है। ध्यान और मन की एकाग्रता के माध्यम से हम अपने अस्तित्व की मूल सत्ता को पहचान सकते हैं और ध्रुवता को प्राप्त कर सकते हैं। इस प्रक्रिया में हम शांति, सुख, और आनंद की अनुभूति करते हैं, जो हमें सामरिक और स्थायी खुशी प्रदान करती है। यह जानकारी हेमेंद्र निगम ने दी।

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